आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।
आ. तेजवीर सिंह जी आपने आग़ाज़ ही एक शानदार लघुकथा से किया है तो ज़ाहिर है अंजाम की परवा नहीं है। लघुकथा में काल्पनिक पात्र कुछ इस तरह वार्तालाप करते हैं कि सजीव हो उठते हैं। और लघुकथा का सन्देश मनमस्तिक पर एक प्रहारक पंच देता है। कुछ सोचने पर मजबूर कर तो करता ही है साथ ही एक बार फिर पढ़ने को मन करता है। बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक आभार आदरणीय मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दिक़ी जी।
उम्दा लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय तेज वीर सिंह जी. "क़ुदरत की मार" की जगह "क़ुदरत से खिलवाड़" शीर्षक बेहतर रहेगा. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
शानदार कथा से आयोजन का आरम्भ करने की हार्दिक बधाई स्वीकार करें या० तेजवीर जी। गागर में सागर से भाव भरे ये लघुकथा एक साथ कई चीज़ों को ओर इंगित करती है। विषय को भली भांति निरूपित करती कथा पर पुनः बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय सीमा सिंह जी।
विषैला
बहुत समय पहले की बात है। दो गहरे दोस्त थे साँप और बिच्छू । एक दिन दोनों ने आपस में ख़ूब मज़ाक और अठखेलियाँ की । मज़ाक ही मज़ाक में दोनों ने तय किया कि चलो आज अपना सारा विष किसी पात्र में निकालते हैं ।
देखें उसके बाद क्या होता है ? साँप बोला-" विष निकालने के लिए कोई पात्र चाहिए ।"
बिच्छू -" वो देखो , उस पेड़ के नीचे एक पुराने और सूखे नारियल की कटोरीनुमा खोल पड़ी है । वही ठीक रहेगी ।" साँप ने हामी भर दी । दोनों वहाँ पहुँचे । बारी-बारी से दोनों ने अपना विष खोल में उतार दिया । दोनों दूर जाकर परिणाम देखने लगे। अचानक उन्हें पत्तों के खड़खड़ाने की आवाज़ सुनाई दी ।
" देखो...देखो...देखो.... वह हमारा विष चुराकर भाग रहा है ।" बिच्छू ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा ।
" कौन है वह ?" साँप बोला ।
" अरे ! वही जाना पहचाना इस धरती का नीच हरामी इंसान ।" बिच्छू बोला ।
" मगर वह हमारे विष का क्या करेगा ?" साँप ने ज़ोर देकर पूछा ।
" कुछ नहीं वह सबको बाँटेगा । मतलब जगह-जगह विष घोलेगा । सदियों से यही करता आया है कमीना ।" बिच्छू क्रोध से बोला । और देखते ही देखते इंसान विष लेकर रफू चक्कर हो गया । विष रहित योद्धा निरीह दिख रहे थे ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
रचना को अपनी टिप्पणी से पोषित करने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुनील वर्मा जी ।
विषयांतर्गत बहुत बढ़िया चिंतन मनन के साथ बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मुहम्मद आरिफ़ साहिब। दरअसल आप जो पराजित योद्धाओं की पीड़ा यहां बताना चाहते हैं, उसके लिए रचना में और समय देना होगा।
रचना पर निरपेक्ष और सारगर्भित टिप्पणी से पोषित करने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। इस बार आपकी लघुकथा मुझे उतनी सटीक विषय को परिभाषित करती प्रतीत नहीं हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ। बहरहाल इस प्रस्तुति पर आपको बधाई निवेदित है। सादर
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