For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इन्तिजार ....

दफ़्न कर दिए
सारे जलजले
दर्द के
इश्क़ की
किताब में

ढूंढती रही
कभी
ख़ुद में तुझको
कभी
ख़ुद में ख़ुद को
मगर
तू था कि बैठा रहा
चश्म-ए -साहिल पर
इक अजनबी बन के

मैं
तैरती रही
एक ख़्वाब सी
तेरे
इश्क़ की
किताब में

राह-ए-उल्फ़त में
दिल को
अजीब सी सौग़ात मिली
स्याह ख़्वाब मिले
मुंतज़िर सी रात मिली
यादों के सैलाब मिले
चश्म को बरसात मिली
भूल गयी ज़िंदगी
जीने का शऊर
लम्स रहे ज़िंदा
लबों को सहरा सी प्यास मिली
खोयी थी तुझमें
तुझसे मिलकर
खोयी हूँ तुझमें
तुझसे बिछुड़कर
दफ़्न कर दिये हैं वो सारे लम्हात
जिनमें जीने के लिए मरी थी मैं
अब जीने के लिए
मैंने
तेरे इश्क़ की
किताब का
वो सफ़ह
हमेशा के लिए हटा दिया
जिसकी पेशानी पे
लिखा था
इन्तिजार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 393

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on April 20, 2018 at 2:00pm

आदरणीय विजय निकोर जी, सादर प्रणाम ... सृजन में निहित भावों को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 20, 2018 at 2:00pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति के भावों को मान देने एवं अपने अमूल्य सुझाव से सृजन में सुधार हेतु मार्गदर्शन करने का दिल से शुक्रिया। मैं संभोधित सृजन पुनः प्रेषित करता हूँ। आपका तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on April 19, 2018 at 2:42pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कुछ सुझाव हैं :-

'दफन'--"दफ़्न"

'इश्क'---"इश्क़"

'चश्म-ऐ----"चश्म-ए-"

'स्याह से ख़्वाब मिले'--"स्याह ख़्वाब मिले"

'वो सफा'--"वो सफ़ह:"

'इंतिजार'--"इन्तिज़ार"

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:23pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2018 at 12:23pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 19, 2018 at 10:30am

आदरणीय सुशील सरना जी, नमस्कार । खूबसूरत रचना के लिए बधाई ।

Comment by Harash Mahajan on April 18, 2018 at 5:24pm

वाह एक बेहतरीन नज़्म हुई है आदरणीय सुशील सरना जी ।

खूबसूरती से निभाया है सर ।

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

नादिर ख़ान replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी बेहतरीन गजल के लिए मुबारकबाद आपको ..."
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय, संजय तल्ख़ जी मैंने इस पर विचार किया, और पाया, बड़े शायर भी ऐसा करते रहे है।अतः क्षमा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल 2122 1122 1122 22 ( 112 ) दोस्त जो मुझको मिला साज़ समन्दर निकला महरबाँ मुझ पे ख़ुदा था मैं…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन प्रकाश, हौसला अफ़ज़ाई और बहुमूल्य राय का तहे दिल से शुक्रिया। "मैं" को १ पर…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय चेतन प्रकाश जी।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"नमस्कार, भाई, संजय शुक्ल तल्ख जी, बहुत अच्छी ग़जल कही आपने बस, शेर न0. 9 में, मुझे रब्त का अभाव…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
" आदाब, भाई अमित जी,नायाब अशआर से सजी उद्धरणीय ग़ज़ल कही आपने हार्दिक बधाई !"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय संजय शुक्ला जी "
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"जो दुआओं के गुहर जेब में भर कर निकलाबस वही शख़्स मुक़द्दर का सिकंदर निकला /1 इक न इक रोज़ जियूँगा…"
4 hours ago
Euphonic Amit and अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी are now friends
11 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल ~2122 1122 1122 22/112 तोड़ कर दर्द की दीवार वो बाहर निकला  दिल-ए-मुज़्तर से मिरे एक…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service