आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय कनक जी।
बेहतरीन लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय तेजवीर जी ,आभार ,सदर
हार्दिक आभार आदरणीय बरखा शुक्ला जी।
बलात्कार के बारे मे निडर होकर आगे आने से ही इस प्रकार के अपराधों मे कमी आयगी। शानदार सशक्त रचना हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर जी
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी।
दारोग़ा समझ गया उसका पाला आम लडकी से नही पड़ा।क्योंकि आम लडकी में इतनी हिम्मत होना मुश्किल है वह सीधे थाने पहुँचकर दरोग़ा को तलब करे ।लडकी का भयमुक्त होना बड़ी कुशलता से स्पष्ट किया है आपने ।बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
अच्छी लघुकथा हुई है आ० तेजवीर सिंह जी, अंतिम संवाद ज़ोरदार हुआ है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी। आपके मार्ग दर्शन का सदैव इंतज़ार रहता है।
डर
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“माँ! रूचि कुत्ते के पिल्लों के मुहं में कभी हाथ डाल रही है कभी उनके कान खींच रही है” राहुल ने अपनी मम्मी से छोटी बहिन की शिकायत करते हुए कहा
“ कोई बात नहीं बेटा, पप्पीस पालतू हैं , खेलने दो कोई बात नहीं “ माँ ने राहुल को समझाते हुए कहा
“ माँ ! रूचि मान नहीं रही है, कभी अलमारी पर तो कभी पलंग के हुड पर खडी होकर कूद रही है / एक दो बार गिरते गिरते भी बची है –मुझे तो बड़ा डर लग रहा है “
“ कोई बात नहीं बेटा! खेलने दो, इससे हिम्मत बढ़ती है “
कुछ देर तक राहुल का अपनी माँ से रूचि की शिकायतों का दौर चलता रहा और फिर जब माँ का काम ख़त्म हो गया तो उसने राहुल को आवाज दी
“ बेटा, रूचि कहाँ है? “
“ माँ! अभी पड़ोस के बबलू भैया आये थे, रूचि उनके साथ पास की दुकान पर टाफी लेने के लिए बस अभी ही निकली है “ राहुल ने त्वरित जवाब दिया
“क्या ! अरे उसे तुरंत बापस बुलाओ, मुझे बड़ा डर लग रहा है “
“ डर ..कैसा डर माँ , बबलू भैया के ही साथ तो गयी है ;अभी आ जावेगी “ राहुल ने चौंकते हुए कहा
“ बस तू जल्दी से उसे बुला ला ..मुझे क्यूँ डर लग रहा है अभी तू नहीं समझेगा “
मौलिक व अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष जी।सुन्दर प्रस्तुति।
आदरणीय तेजवीर जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
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