आदरणीय साथिओ,
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बढ़िया रचना के लिए बहुत -बहुत बधाई आदरणीय उस्मानी जी ,सादर
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बरखा शुक्ल जी।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
धर्म संकट की तीव्रता और एहसान को केंद्र में रखकर रची गई बहुत ही विचारोत्तेजक लघुकथा । अंत जीत तालीम की ही होती है । पात्रानुकूल संवाल , देशकाल वातावरण भी सामयिक और ज्वलंत । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
अपने विचार सांझा कर, अपनी राय से अवगत करा कर प्रोत्साहित करने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।
एहसानों के बोझ तले इन्सान कभी-कभी गलत फैसले लेकर जीवन को संकट में डाल देता हैं लेकिन इस लघु कथा के माध्यम से यह संदेश दिया गया हैं कि एहसान फरामोश कभी नही होना चाहिए लेकिन उससे उऋण होने के लिए अपना या अपनों का जीवन बर्बाद नही करना चाहिए.बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी.
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
रचना का विषय बढ़िया है और प्रस्तुति भी ठीक है लेकिन कुछ शब्दों का प्रयोग नहीं होता तो बेहतर होता. जैसे "खिलती, जवान होती बेहद खूबसूरत बिटिया" में खिलती का प्रयोग उचित नहीं लगता, आशा है आप समझ जायेंगे. बहरहाल बहुत बहुत बधाई आपको आ शेख शहज़ाद साहब
बहुत बहुत शुक्रिया। कुछ शब्दों के उपयोग पात्रा के बचपन व किशोरावस्था से युवावस्था तक का शब्दचित्र पेश करने व समसामयिक परिदृश्य चित्रण करने के लिये प्रतीकात्मक रूप से करने की कोशिश की गई थी। सादर।
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब , सच्चे पड़ोसी का मंज़र दिखाती प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
जिस बीवी का शौहर बाहर हो ।बेटी घर में हो।तब उन्है पड़ोसी यदि अच्छे ना मिले तो बनते समीकरण बिगड़ जाते है। उम्दा कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
अपनी राय सांझा करते हुए हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा नीता कसार साहिबा।
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