आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय तसदीक साहब हौसलाअफजाई के लिए तहेदिल से आभार आपका।
आम आदमी सीधे,सरल होते है वे पैंतरेबाज़ी नही जानते ।भोले भाले व्यक्ति को कर्तव्यपरायणता का एेसा पुरूस्कार मिल सकता है वह सोच नही सकता ।बधाई कथा के लिये आद० कनक हरलालका जी ।
कथा की उत्साह वर्धक प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार
अच्छी लघुकथा कही है आ० कनक हरलालका जी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय योगराज जी ।आपके द्वारा कथा को सहमति मिलना एक उपलब्धि है ।प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार सरजी।
जनाब कनक जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय समीर कबीर जी ।हौसलाअफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया कुबूल फरमाएं ।
आदरणीय आपको तो बहुत-सी टिप्पणियां मिल चुकी हैं। हम क्या कहें। हम तो बहुत अधिक जानकार भी नहीं। इसलिए आपको आमंत्रित करते हैं स्वरचित लघुकथा पर सटीक टिप्पणी के लिए। आप kripy बताइये कि कहां सुधार की आवश्यकता है और कैसे लिखे हुए को सार्थक करना है।
बढ़िया लघुकथा है आ. कनक हरलालका जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। शीर्षक मुझे लगता है और बेहतर किया जा सकता है। सादर।
आदरणीया कनक दी एक अच्छी लघुकथा पढवाने हेतु हार्दिक बधाई|
लघुकथा _हम सरी (समीकरण)
इंसाफ खान साहिब ईद की नमाज़ पढ़ कर रास्ते में सबसे ईद मिलते हुए जैसे ही घर के अन्दर दाखिल हुए, उनके दोनों बच्चे सलीम और सलमा उनसे लिपट गए |
उन्होने दोनों के सर पर हाथ रख कर कहा "हमें मालूम है तुम दोनों को ईदी चाहिए"
सलमा को मायूस देख कर खान साहिब बोले "क्या बात है बेटी, आज ख़ुशी का दिन है, चहरे पर उदासी अच्छी नहीं"
सलमा ने रोते हुए कहा "अम्मी ने मुझे सौ रुपए और भैया को दो सौ रुपए ईदी दी है"
खान साहिब ने बीवी को आ वाज़ देकर कहा "तुम ने बच्चों के साथ ऎसा भेद भाव क्यूँ किया?"
बीवी ने किचन से जवाब दिया "सलीम लड़का है इसलिए ऎसा किया "
खान साहिब ने त्युरी चढ़ाते हुए कहा" जब हमारे नबी ने औलाद में फ़र्क़ नहीं किया तो हम कौन होते हैं फ़र्क़ करनेे वाले, हमारी नज़र में दोनों बराबर हैं"
खान साहिब ने मुस्कराते हुए सलीम से कहा" यह तुम्हारी छोटी बहन है, क्या तुम चाहते हो कि यह आज के दिन उदास रहे?"
सलीम ने जवाब दिया "नहीं अब्बू जान "
खान साहिब ने फिर सौ रुपए सलीम को और दो सौ रुपए सलमा को देते हुए कहा" अब दोनों मुस्कुराओ और मिल जुल कर ईद की खुशी मनाओ |"
(मौलिक व अप्रकाशित)
बिल्कुल सही इंसाफ किया इंसाफ खान साहब ने। ईदी पर तो सभी का बराबर हक़ है। माँ कभी कभी बेटों पर कुछ ज़्यादा ही मिहरबान हो जाती है। सुन्दर रचना। बधाई
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