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रूह से भी यारी है - ग़ज़ल

जिस्म से रूह से भी यारी है
इश्क़ में इक सदी गुजारी है

उनसे मिलके भी दिल नहीं भरता
बढ़ रही फिर से बेकरारी है

उनकी बातें हैं जाम की बातें
फिर से चढ़ने लगी खुमारी है

सारी खुशियाँ उन्हें मुअस्सर हैं
सिर्फ अपनी ही गम से यारी है

उनके लब पे भी नाम हो अपना
ये  कवायद  हमारी  जारी  है

एक दिन वो मिलेंगे हमको ही
इश्क़  से  क़ायनात  हारी  है

मैं भी मिल पाऊँगा यक़ीन हुआ
उनके अपनों की आज बारी है !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on August 2, 2018 at 10:12pm

ये कवायद तभी से जारी है /

इस मिसरे में 'तभी' शब्द ऊला मिसरे के हिसाब से उचित नहीं,यूँ कर सकते हैं:-

'ये क़वायद हमारी जारी है'

Comment by विनय कुमार on August 2, 2018 at 6:54pm

ग़ज़ल पर उपस्थित होकर हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब. आपके सुझाव के अनुसार परिवर्तन कर देता हूँ. //ये कवायद शुरू से जारी है // की जगह //ये कवायद तभी से जारी है // ठीक रहेगा क्या, कृपया सुझाव दें. शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on August 2, 2018 at 6:45pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

सारी खुशियाँ उन्हें मुअस्सर हों'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

"सारी खुशियाँ उन्हें मयस्सर हैं'

ये  कवायद  शुरू  से  जारी  है'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है 'शुरू' ग़लत है,सहीह शब्द है "शुरू'अ" है ।

कृपया ध्यान दे...

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