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ग़ज़ल _ घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |0

(फाइ ला तुन _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फे लुन)

घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |
उनके तब्दील खयालात नज़र आ ते हैं |

सिर्फ़ मेरी ही नहीं उनसे तलब मिलने की
वो भी मुश्ताक़े मुलाकात नज़र आ ते हैं |

जिनके वादों ने हसीं ख्वाब दिखाए मुझको
उफ़ बदलते हुए वो बात नज़र आ ते हैं |

उनकी यादों को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे
वो तसव्वुर में भी दिन रात नज़र आ ते हैं |

बे असर यूँ न हुईं मेरी वफाएँ यारो
उनके सोए हुए जज़्बात नज़र आ ते हैं |

ख़ास जो दोस्त हैं मिलती है यह उन में खसलत
वक्ते मुश्किल वो सदा साथ नज़र आ ते हैं |

ज़ख़मे नौ देता है तस्दीक वो हर दिन फ़िर भी
तुम को आसारे इना यात नज़र आ ते हैं |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2018 at 4:43pm

मुहतरम जनाब आरिफ साहिब आ दाब  , ग़ज़ल परआपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I  

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2018 at 4:42pm

जनाब गुरप्रीत साहिब, ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by Mohammed Arif on August 6, 2018 at 1:28pm

आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,

                    बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल कजिए ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on August 6, 2018 at 12:56pm

वाह वाह आ तस्दीक़ अहमद खान जी , बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। मुबारकबाद कबूल करें

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2018 at 11:56am

जनाब विनय कुमार साहिब  , ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by विनय कुमार on August 6, 2018 at 11:14am

वाह, वाह, क्या बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने आ तस्दीक़ अहमद खान साहब, दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें

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