आदरणीय साथिओ,
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खुदा के दरबार में किसी तरह की साहूकारी नही चलती जहाँ पास्कल जैसे लोग आस्तिकता और नास्तिकता के तराज़ू में अपना नफ़ा नुक़सान तौल सके ।दार्शनिक अंदाज लिये कथा के लिये बधाई आद०महेंद्र कुमार जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी। बेहतरीन लघुकथा ।आपकी लेखन शैली सदैव की भाँति धारा प्रवाह है।मगर मेरे विचार से आपकी लघुकथा अंध विश्वास को बढ़ावा देती हुई लगती है।
लघुकथा को पसन्द करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी। यदि इस लघुकथा को स्वतंत्र रूप से (सन्दर्भ रहित) देखा जाए तो यह अंधविश्वास को बढ़ावा देती हुई लग सकती है मगर ऐसा है नहीं। वस्तुतः यह ब्लेज़ पास्कल द्वारा ईश्वर में आस्था रखने के लिए दिए गए तर्क (Pascal's Wagner) का खण्डन प्रस्तुत करती है। आशा है बात स्पष्ट हुई होगी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
महेंद्र जी। अभी pascal wager पढ़ा। कथा का तत्त्व ही अब समझ में आया।
यदि आप इस बात का थोड़ा उल्लेख कथा या नोट बना कर कर देते तो पाठक को दृष्टिकोण मिल सकता है।
हालांकि बिना संदर्भ के भी कथा उतनी ही प्रभावी है
मुझे लगता है यह काम समीक्षकों का है आदरणीय अजय जी, हा हा हा... Pascal's Wager को पढ़ कर कथा पर पुनः दृष्टि डालने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता जी। आभारी हूँ। सादर।
मानव कितना भी हाईटेक हो गया हो पर,ह्रदय के किसी कोने में तीसरी शक्ति के प्रति विश्वास होने के कारण दिल दिमाग पर हावी हो जाता हैं.लेकिन फिर भी वो इसमें अपनी बनियासाई सोच लगाके अपने आप को धोखा देता रहता हैं.बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया बबिता जी। आपका हृदय से आभारी हूँ। सादर।
हमेशा की तरह एक अलग परिद्रश्य लिए कथा हार्दिक बधाई .पर मुझे कहीं ऐसा लगा कि आप कहना कुछ और चाह रहे थे पर अंत तक आते आते उसका निर्वहन नहीं हो पाया
अन्य प्रतिक्रियाओं को देखकर ऐसा नहीं लगता कि मैं जो कहना चाहता था वो नहीं कह पाया फिर भी इस पर एक बार पुनः विचार करूँगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा जी। हार्दिक आभार। सादर।
जनाब महेंद्र कुमार साहिब , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान जी। सादर आभार।
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