आदरणीय साथिओ,
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सार्थक हुई दुआ
मैं टैक्सी से निकल ,भाई, कपिल के हॉस्पीटल में ससुराल जाते समय मिलने गई. फिर जल्दी आने का वायदा कर मैं बाहर आ गई.अंदर बाहर मरीजों के साथ-साथ लोगो के आने -जाने वालों की भीड़ लगी हुई थी.पार्किंग में सायकल से लेकर चार पहिये की तो करीब आठ-दस गाड़ियां खड़ी थी.
अनायास ही गाड़ियां देख पुराना दृश्य आँखों के सामने तैर गया.जब पापा ने हम सभी बच्चों की परवरिश में अपना सब कुछ लगा दिया था.एक दिन पापा को निराश देख, हम सबके शुभाक्षी बावा समझाने लगे - 'तुम चिंता क्यों करते हो? आस से आसमान होता हैं .'
रूँधे गले से पापा बोले- 'मैं हार गया,पता नहीं ,बच्चों के भाग्य में क्या लिखा हैं?'
ढांढस बंधाते हुए बावा ऊँचे स्वर में कहने लगे- 'देखना,तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा.तुम्हारे द्वार पर चार पहिया खड़े होंगे.'
मैं और भाई भी वही खड़े थे.बावा का ऐसा कहते सुन सोचने लगी,क्या वास्तव में ऐसा होगा?लेकिन मन में कही बड़ों की कही हुई बातों में विश्वास था कि दिल से दी दुआए कभी खाली नहीं जाती.
तभी पीछे से कपिल की आवाज ने मुझे चौका दिया,कह रहा था- 'आप गई नहीं. किस दुनिया में खो गई आप?
कुछ नहीं,बस बावा की कही बाते याद हो आई थी,मैंने कहा.
'कुछ नहीं भूला हूँ,सब बावा के ही आशीर्वाद से हूँ.'
'विश्वास तो था,पर आज पूरा विश्वास हो गया कि बड़े ही हमारे भगवान के रूप .......'
मौलिक व अप्रकाशित
आस से आसमान होता है।
बहुत सुंदर और पावन भाव पिरोए। पढ़ने में विशेष अनुराग उत्पन्न हुआ इस कथा से।
बहुत खूब
धन्यवाद आदरणीय सरजी।
मुह तरमा बबिता साहिबा , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
धन्यवाद ,आदरणीय सरजी।
आस्था और विश्वास मेहनत में चार चांद लगा देते हैं।बढिया साकारत्मक कथा
रचना का मर्म पहचानने के लिए धन्यवाद आदरणीया अर्चना दी.
आस्था और विश्वास को पुख्ता करती सुंदर रचना बबिता गुप्ता जी। हार्दिक बधाई। सादर।
रचना का भाव समझने के लिए धन्यवाद आदरणीय सर जी.
मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
धन्यवाद आदरणीय समर सरजी।
बढ़िया लघुकथा बबीता जी ।वर्तमान युग में भी आस्था और विश्वास मनुष्य के मन का बहुत बड़ा सम्बल है ।
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