आदरणीय साथिओ,
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आभार आदरणीया अर्चना जी।
फूल,कली,भँवरा और जज को प्रतीक बना कर कथा रची है ,फूल कलियों की अपनी व्यथा होती है।कथा के लिये बधाई आद० मनन कुमार सिंह जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीया नीता जी।
आदरणीय मनन कुमार जी। फूल, कलियां और भौंरों के माध्यम से आपने इंसानी विशेषकर निर्दोष फंसे युवकों की व्यथा को दर्शाने का प्रयास किया, लगता है। व्यंग्यात्मक शैली में लिखी लघुकथा पठनीय बन पड़ी है। दरअसल अवमानना का आरोप न लग जाए इसलिए न्यायप्रक्रिया या न्यायालय के बारे में लोग बोलने, लिखने से परहेज करते दिखाई देते हैं। जबकि इसपर चिंतन-मनन की आवश्यकता है क्योंकि ये लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ ही नहीं बल्कि हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा भी है। पहले हमारा समाज जहां संस्कारों और परंपराओं से अनुशासित था वही अब कानून का डंडा भी पहले से अधिक प्रभावी हो रहा है। ऐसे में निष्पक्षता, पारदर्शिता और समानता का भाव भी परिलक्षित होना चाहिए, पता नहीं लोग हमारी व्यक्तिगत राय से कहां तक सहमत होंगे, पर लघुकथा पढकर जो विचार आए उन्हें पटल पर रख दिया, वह भी इसलिए क्योंकि आजकल सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस हमारा समाज खोता जा रहा है, सब अपने स्वार्थ या मतलब की दुनिया में खोये हुए हैं जो कुछ कहना भी चाहते हैं तो उनकी आवाज अनसुनी कर दी जाती है। बधाई आपको। सीखने के क्रम में आप सभी पढ़ते हुए हमने भी लिखने की कोशिश की है। कृपया सुधारों से अवश्य की अवगत कराने की कृपा कीजिएगा। धन्यवाद। दुआओं का तलबगार
आपका शुक्रिया आदरणीय आशीष जी।
प्रतिकात्मक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी.
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ओमप्रकाश जी।
आदाब। देखा जाए, तो बिम्बों के माध्यम से हर एक शोषित और हर एक शोषणकर्ता को बाख़ूबी कटघरे में खड़ा किया गया है यहां। ताली एक हाथ से नहीं बजती । हर एक के पास स्वयं को सही साबित करने हेतु एक से बढ़कर एक तर्क या कुतर्क हैं। बेहतरीन सृजन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। वैसे रचना अभी और समय मांग रही है। सादर।
आपका आभार आदरणीय उस्मानीजी।
प्रतीकात्मक भाषाशैली में शोषक और शोषित द्वारा आरोप प्रत्यारोप बहुत ही सटी।बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन सरजी।
आपका आभार आदरणीया बबीता जी।
वाह, वाह, प्रतीकों के रूप में कली, फूल और भंवरों का उपयोग करके बहुत शानदार रचना लिखी है आपने आ मनन कुमार सिंह जी. अपने आपको सही सिद्ध करना, चाहे किसी भी कुतर्क से हो, बस यही रह गया है आजकल. और जिनपर जिम्मेदारी है वही इसे पूरा नहीं करते. आपकी लेखनी औरों से अलहदा है, इसे बरकरार रखिये. बहुत बहुत बधाई आपको
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