आदरणीय साथिओ,
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जितनी सुविधा उतनी दुविधा ,ओह!माता पिता अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति इतने लापरवाह हो जाते है कि वे भूल जाते है कि वे कहाँ हैं ।उम्दा कथा के लिये बधाई आद० ओम भाई जी ।
आदरणीय नीता कसारजी दीदी कभीकभी मैं भी इतना खो जाता हूँ कि श्रीमती जी आवाज़ देती हैं और मुझे भी पता नहीं चलता हैं. आभार आप का इस शानदार मत के लिए.
आदरणीय ओमप्रकाश जी। बहुत ही सुंदर तरीके से आपने मोबाइल के (दुर) उपयोग पर चित्रण किया है। कई मुश्किलों को तो हम स्वयं ही आमंत्रण देते हैं। सुविधाओं को दुविधाओं में बदल देने की आदत कई बार औरों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर देती है। जब हमने समाचार पत्रों में पढ़ा कि मोबाइल बना तलाक का कारण या मोबाइल की लत बिगाड़ रही बच्चों को तो हमने भी इस पर लिखने का विचार किया, परंतु इतना अच्छा नहीं लिख पाए। कम शब्दों में गंभीर बात आपने समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया। सीखने के क्रम में आप सभी पढ़ते हुए हमने भी लिखने की कोशिश की है। कृपया सुधारों से अवश्य की अवगत कराने की कृपा कीजिएगा।
धन्यवाद। आशीर्वाद का अभिलाषी
आदरणीय आशीष श्रीवास्तव जी आप की विस्तृत प्रतिक्रिया पा कर मन प्रसन्न हो गया. आजकल मोबाइल घर बिगाड़ने के साथसाथ जोड़ने का कार्य भी कर रहे हैं. इस के दूरूपयोग पर आप की प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदाब। //शौचालय में कुत्ता बैठा हुआ था.// इस पंक्ति और /फ़र्श/, /आवेग/ आदि के माध्यम से कम शब्दों में कही-अनकही अभिव्यक्ति सहित बहुत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहिब। शीर्षक कोई नवीन भी हो सकता है।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आप ने बहुत बढ़िया बात कहीं. शीर्षक और भी हो सकता था. शुक्रिया इस सुझाव के लिए. हार्दिक आभार आप का.
आ. भाई ओमप्रकाश जी, आधुनिक जीवनशैली में जीते हुए हम किस तरह कर्तव्यविमुख हो रहे हैं इसको बयान करती अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आप ने ठीक फ़रमाया. आधुनिक जीवन शैली ने लाभ के साथ हानि के साधन भी मुहैया कराए हैं. यह हमारे ऊपर हैं कि हम उस का किस तरह इस्तेमाल करते हैं. हार्दिक आभार आप का अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए.
वर्तमान में इस दीवानगी ने बहुत नुक्सान करना शुरू कर दिया है, बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर. इस तरह की खूब रचनाएँ पढ़ने को मिल रही हैं आजकल, बहुत बहुत बधाई आ ओम प्रकाश जी
आदरणीय विनय कुमार जी आप का कहना बहुत सही है. इस दीवानगी ने बहुत नुकसान किया हैं. हार्दिक आभार आप का , मुझे प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए.
वास्तव में आज हम मोबाइल कल्चर में कैद होकर रह गए हैं। बहुत ही बढ़िया सम्प्रेषण। हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी।
आदरणीय नीलम उपाध्याय जी आप का हार्दिक आभार मेरी लघुकथा पर अपनी प्रतिक्रिया दे कर मेरी हौसलाअफजाई करने के लिए.
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