आदरणीय साथिओ,
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समाज में तकनीक के प्रवेश और उससे उपजे संकट को मोबाइल के माध्यम से बहुत बढ़िया ढंग से उभारा है आपने आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. बस यदि आप शीर्षक को बदल दें तो दिल ख़ुश हो जाए. कोशिश कीजिए की दिए गए विषय को शीर्षक के रूप में कभी भी प्रयोग न करिए जब तक कि ऐसा करना अनिवार्य न हो जाए. सादर.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आप का हार्दिक आभार . आप का सुझाव बहुत शानदार है. कृपया अच्छा सा शीर्षक सुझाने में मेरी मदद कीजिए आदरनीय .
आदरणीय ओमप्रकाश जी, मेरे हिसाब से "रेडिएशन" शीर्षक आपकी लघुकथा के लिए उत्तम रहेगा. संभवतः आपको भी पसन्द आये. सादर.
आज की सबसे ज्वलंत समस्या मोबाइल प्रेम पर बढ़िया कथा। . हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी हार्दिक आभार . आप ने सही कहा है.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आप का हार्दिक आभार . आप का सुझाव बहुत शानदार है. कृपया अच्छा सा शीर्षक सुझाने में मेरी मदद कीजिए आदरनीय .
आजकल के दोर में मोबाइल कल्चर के साइड इफ़ेक्ट को दिखाती अच्छी रचना के लिये हार्दिक बधाई भाई ओम प्रकाश जी। सादर।
आदरनीय ओमप्रकाश जी, बहुत सुंदर लघुकथा के लिए बधाई
मैपस्को
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"क्यों राधेश्याम ! अपना बबलू आजकल दिखता नहीं है , क्या कहीं बाहर गया है?"
"हाॅं, सीताराम ! वह "मैपस्को" के काम से अनेक शहरों में जाता आता रहता है।"
"यह मैपस्को क्या है ?"
"उसने एक कंपनी बनाई है जिसका नाम है "मैन पावर सपलाइंग कंपनी" यह इसी का संक्षिप्त नाम है ।"
"यह क्या है?"
"अरे ! ये तो तुम्हें मालूम ही होगा कि आजकल का जमाना ठेके पर चल रहा है, इसलिये बबलू ने ‘मैन पावर सप्लाइंग कंपनी‘ बनाकर जिसे जितने आदमी /कार्यकर्ता चाहिये होते हैं उन्हें उस कार्य के लिये, उतने समय के लिये , उतने लोग एक मुश्त राशि लेकर भेज देता है यही उसकी कंपनी का कार्य है।"
"पर ये आते कहाॅं से हैं??"
"अरे भैया ! कहाॅं भूले हो ? कम से कम दो दिन पहले आर्डर तो दो, कितने चाहिये? बेरोजगारी इतनी है कि दैनिक मजदूरी पर सैकड़ों मिल जाते हैं। खेतों की जुताई कराना हो या कटाई, मकानों को बनवाना हो , चुनाव प्रचार कराना हो, नेताओं की सभाओं में भीड़ जुटाना हो, सभाओं में तालियाॅं बजवाना हो या हूट कराना हो, धरने पर बैठना हो या जुलूस मेें हो हल्ला कराना हो सब कुछ ठेके पर ही होता है। इतना ही नहीं अब तो स्कूलों / कालेजों की पढ़ाई लिखाई भी ठेके पर ही कराई जाती है, समझे?"
मौलिक व अप्रकाशित
आज हर बात के लिए ठेकेदारी हो रही हैं।शिक्षा व्यवस्था पर भी करारा वार किया हैं आपने हार्दिक बधाई आपको आ. टी आर शुक्ल जी
आजकल की व्यथा कथा का सुंदर चित्रण बधाई आद० टी०आर० शुक्ल जी ।
एक नई अवधारणा को व्यक्त करती रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुकुल जी
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