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बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ज़िन्दगी खत्म तो नहीं होगी
रूह भी जिस्म में कहीं होगी 
धड़कनें दिल मे ही बसी होगी
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ये शब ओ रोज़ यूं ही गुज़रेंगे
चाँद सूरज भी पाली बदलेंगे
धूप होगी और चांदनी होगी
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

वक़्त मुझे भूलना सिखा देगा
फिर कोई आएगा, हंसा देगा 
बाद तेरे भी हर ख़ुशी होगी 
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

याद धुँधली तो हो ही जाएगी
वो निशानी भी खो ही जाएगी

पर जब तू याद भी नहीं होगी 
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

साथ तो सबका छूट जाना है 
और बस दो ही तो बहाना है
मौत होगी या ज़िन्दगी होगी
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

-सालिम

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 6:05am

आदरणीय सालिम शेख साहब, आदाब. सुन्दर नज़्म हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on November 2, 2018 at 3:15pm

जनाब सालिम शैख़ साहिब आदाब, बहुत समय बाद आपको पटल पर देखकर अच्छा लगा ।

अच्छी नज़्म हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

" और बस दो ही तो बहाना है"

इस मिसरे पर विचार करें?

Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2018 at 10:44am

हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम शेख जी। बेहतरीन गज़ल ।

ये शब ओ रोज़ यूं ही गुज़रेंगे
चाँद सूरज भी पाली बदलेंगे
धूप होगी और चांदनी होगी
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

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