आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
अच्छी लघुकथा काही है आ० सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी। रचना की प्रथंपंक्ति पर भाई उसमानी जी द्वारा दी गई इसलाह से मैं भी सहमत हूँ। बहरहाल आयोजन में सहभागिता एवं विषयानुरूप लघुकथा हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें।
मेरे टिप्पणी अभ्यास पर सहमति द्वारा मुझे प्रोत्साहित करने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर साहिब।
अच्छी लघु कथा लिखी है आद० सुरेन्द्र कुमार जी बहुत बहुत बधाई
प्रद्दत विषय पर अच्छी रचना आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी, शीर्षक और सम्वाद दोनों ही स्तर पर प्रस्तुति अच्छी हुयी है. बधाई स्वीकार करें भाई जी
अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीय सुरेंद्र कुमार अरोड़ा जी।
"अस्वीकृति का दंश"
"क्या आपको नहीं लगता कि भूकंप के एक हल्के से झटके में पूरी इमारत के धवस्त हो जाने के पीछे इसके निर्माण में अभियंता और ठेकेदार की मिलिभक्त भी हादसे की एक वजह हो सकती हैं।" घाघ पत्रकार ने बड़ी चालाकी से अपना प्रश्न किया।
हाल ही में बनी उस शानदार इमारत का सौंदर्य देखते ही बनता था। जिसने भी देखा था, उसके निर्माता और शिल्पकार की सराहना किए बिना नहीं रहा था। लेकिन प्रकृति के एक हल्के से झटके ने ही उसे मिट्टी में मिला दिया था। उसी के संदर्भ में पत्रकार, भवन निर्माता से बात हो रही थी।
"हां संभावना व्यक्त की जा सकती है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ है?" भवन निर्माता ने प्रश्न को सहज ही टालना चाहा।
"लेकिन इस प्रोजेक्ट के शुरू में ही कंस्ट्रक्शन-विवाद पर छोड़कर जाने वाले अभियंता मिस्टर कुमार का तो यह कहना है कि वे जानते थे कि देर-सवेर ऐसा होने वाला है।"
"जी ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होनें ऐसा कहा। लेकिन मेरे विचार से ये सिर्फ एक हादसा है जिसके लिये हम केवल प्रकृति को ही दोषी ठहरा सकते हैं।" उन्होंने बात को फिर संभालना चाहा।
"लेकिन सुनने में तो यह भी आया हैं कि घटिया निर्माण सामग्री के कारण.....।"
"नो कमेंट्स, एंड नो मोर क्वेश्चनस प्लीज!" पत्रकार की बात बीच में ही काटकर, जवाब देते हुए वह उठ खड़े हुए। जिस ग़लती को वह स्वीकार नहीं कर पा रहे थे, उसी घटना का दंश एक बार फिर जीवंत वाकया बनकर उन्हें डसने लगा था। . . . . . . . . .
"सर, नींव की गहराई और उसमें लगे सरिया-पत्थर की क्वालिटी इमारत की प्रस्तावित ऊंचाई और नक्शे के लिहाज से हल्की है। मुझें लगता है आपको इसके तय बजट को बढाना चाहिए।"
"लिसन मिस्टर कुमार, डोंट सजेस्ट मी। तुम्हारा काम सिर्फ 'कंस्ट्रक्शन' करना है। और फिर कौन देखता हैं, नींव के पत्थरों को? बिल्डिंग की पहचान उसके डिजाईन और 'स्ट्रक्चर' से होती हैं। जैसे हम कहते हैं, वैसा करों। वरना इस प्रोजेक्ट के लिए और लोग भी तैयार हैं।"
"सॉरी सर, शायद वास्तव में मुझे इस प्रोजेक्ट को नहीं करना चाहिए, लेकिन जाते-जाते मैं इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि नींव के पत्थर नजर भले ही नहीं आते। लेकिन जब समय आता है तो ये अपनी पहचान और परिणाम दोनों पीछे छोड़ जातें हैं।
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
भाई वीर मेहता जी लघुकथा तो अच्छी है और प्रदत्त विषय से न्याय भी कर रही है. यह लघुकथा दरअसल दो भागों में बँटी हुई है,
.
- पहला हिस्सा जहाँ भवन निर्माता और पत्रकार की बातचीत है.
- दूसरे हिस्से में भवन निर्माता और अभियंता कुमार के मध्य पूर्व में हुई कोई बातचीत है.
.
लेकिन शिल्प की दृष्टि से दोनों हिस्सों में कोई सामंजस्य नहीं बैठ पाया है. फ्लैशबैक तकनीक अपना कर इस कमी को दूर किया जा सकता था। इसका संज्ञान लें और मेरी बधाई स्वीकार करें।
लघुकथा पर आपकी सार्थक समीक्षा और 'फ्लेशबैक' तकनीक के सुझाव के लिए दिल से आभार आदरणीय योगराज सर जी. रचना के प्रस्तुतिकरण के समय मेरे पास दो प्रारूप थे लेकिन मैं संशय में था कि इसे किस तरह प्रस्तुत करूँ...आपके इस सुझाव के बाद मेरा संशय दूर हुआ और मैंने 'लघुकथा' के अपने दुसरे प्रारूप को एडिट किया.... आयोजन के बाद मैं उस दुसरे रूप को सुधार के तौर पर रखना चाहूँगा. बरहाल आपकी इस सुंदर टिप्पणी और सुझाव के लिए तहे दिल से हार्दिक आभार भाई जी.
आदरणीय वीरेंंद्र मेहता जी आदाब,
विषयांतर्गत सशक्त लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी। सादर।
एक कड़वी हक़ीक़त और समसामयिक गंभीर मुद्दे पर पोल खोलती बढ़िया उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता साहिब। आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर साहिब की यहां भी सार्थक टिप्पणी और इस्लाह से और आपकी जवाबी टिप्पणी से भी हम सभी लाभांवित हो रहे हैं। सादर हार्दिक आभार।
रचना पर आपकी सुंदर और स्नेह भरी टिप्पणी के लिये तहे दिल से शुक्रिया भाई शेख शहज़ाद उस्मानी भाई। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |