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प्रभा, वो आदेश नहीं था...मैंने तो सिर्फ अपना फर्ज सच्चे दिल से पूरा किया था. एक सलाह थी..रास्ता दिखाया था केवल कि शायद तुम्हें सुकून मिले..मंजिल के लिये तो कदम तुम्हारे ही बढ़े ...तुम्हें ये रास्ता भा गया और यहाँ आकर इस मंच पर तुमने अपनी छिपी हुई प्रतिभा का स्रोत खोल दिया..जिससे मैं भी अनभिज्ञ थी कि तुम इतनी टैलेंटेड हो...जितना जाना था उससे पता नहीं कितने गुना और बढ़कर. मैं अब भी अनजान हूँ तुम्हारे दामन में छिपे उन काव्य- मोतियों से जिनकी चमक देखनी अभी बाकी है :) तुम अगर खुश हो यहाँ भाग लेकर तो मैं भी तुम्हारी खुशी में हमेशा शामिल हूँ.
शुभकामनाओं सहित....
Prabha Ji,
सुना है ज़िंदगी इक बार मिला करती है,
क़ीमती शै है, बेवज़ह ना गँवाई जाए...
Kya Baat sachaayi se ru ba ru kara diya.. lekin duniyan wale iskey ulat hi chalte hain. Bahot khoob.
Surinder Ratti
Mumbai
//चढ़ते सूरज की इबादत तो सभी करते हैं,
टूटे-हारों से चलो प्रीत निभाई जाए...//
बहुत सुन्दर कथ्य ............
प्रभा जी ! सार्थक संदेशपरक इस खूबसूरत सी गज़ल के लिए हृदय से बधाई स्वीकारें ..........
और किसी बात पे रिश्वत भी न खाई जाए |
रस्म इंसानियत की यूं भी निभाई जाए ,
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए |
वाह अरुण भाई वाह...बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है...बहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने...बधाई..
किस पर कहूँ, किस पर न कहूँ. हरेक अशआर पुरअसर.
इस ग़ज़ल को मेरी शुभकामनाएँ.
आखिरी अशआर में नहीं खाई जाये पर जाने क्यों मुझे लगता है थोड़ी और मशक्कत की गुंजाइश है. बेहतर से भी और बेहतर की उम्मीद बन गयी है न आपसे.. .
हो सही फैसला हर ख़ास-ओ-आम के हक में ,
और किसी बात पर रिश्वत नहीं खाई जाए |
यह शेर मेरी सीधी बात कह देने की प्रवृति के मुताबिक है संभव है इसे .... 'खाई जाए ' को बदल कर ठीक .. सौन्दर्यपरक ....अलंकारिक बनाया जा सकता है मैं आपके सुझाव पर गौर करूंगा !!! पुनः बहुत बहुत धन्यवाद !!
जी, सुधार अलंकरण में बेहतरी मात्र नहीं होना न.. बह्र, मात्रा और गेयता के समन्वय की बात कह रहा था मैं.
यदि नहीं खायी को ’न खाई’ किया जाय और पंक्ति की मात्राओं को नियत कर लिया जाय तो बात बेहतर हो सकती है. मैंने कहा न, आपसे बेहतर से बेहतर की उम्मीद बन गयी है.
हम सीखें.. आप सिखायें.. के तर्ज़ पर मैंने ऐसा कहा. यही तो इस मंच की खुसूसियत है.
यदि अन्यथा लगा हो भाई तो क्षमा-प्रार्थी हूँ.
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