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'स्याह' और 'सियाही' शब्द हिन्दी में भी खूब प्रचलित हैं.
अरुण का साथ न मिला तो सलिल अँधेरे में गुम हो जायेगा. कुछ नया रचने के लिये अभिनव भी होना ही पड़ेगा. इसलिए आपके बिना किसी का गुजारा नहीं है.
आपके आशीर्वचन मेरे संबल और पथप्रदर्शक हैं आचार्यवर , अनुकरण होगा , प्रणाम है !!
आदरणीय श्री राणा जी आपकी विस्तृत समीक्षा मेरे लिए धरोहर से कम नहीं | आपका स्नेह बना रहे यही कामना है ! आपके कुशल सञ्चालन में तरही रिकार्ड कामयाबी की और है बधाई !!
आज की कुव्यवस्था पर कुठाराघात करती है आप की ये बेहतरीन ग़ज़ल|
साठ बरसों में सौ कुबेर बनाये इसने ,
इस सियासत को नयी राह दिखाई जाए |"
रफ्ता रफ्ता ये कुंद हो गयी है और बेकार ,
इस व्यवस्था पर नयी धार चढ़ाई जाए |
बहुत-बहुत बधाई|
एक बात है गुरु जी सब्जेक्ट के लिहाज से आपकी ये रचना बेजोड़ है और प्रासंगिक भी बहुत बहुत मुबारकवाद !!
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