आदरणीय साथिओ,
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मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,प्रदत्त विषय पर लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
आभार, समर सरजी।
आदरणीया बबितगुप्त जी, अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
आभार, नीलम दी।
आदाब। बेहतरीन कथानक और कथ्य । नारी ही नारी की शत्रु। स्वार्थ और मिथ्याओं को उभारती, एक बेबस पिता को पुत्री की निस्वार्थ पितृ-सेवा याद कराती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा। पुत्री का नाम लक्ष्मी न भी होता, तब भी यही सही सम्प्रेषण होता ही और कुछ पंक्तियां भी हटाई जा सकतीं थीं। "लक्ष्मी, लक्ष्मी तो दे गई" ऐसा प्राय: निकम्मे पति, पिता या भाई कहा करते हैं शोक के समय या शोक के बाद। लेकिन यहां मां और दादी का सोच बताया गया है, जो चिंता का, विचार का विषय है।
आज के माहौल में नारी भी बेटियों की कमाई से लाभान्वित होकर सुख महसूस करतीं हैं, भले वे बेटियां कष्टप्रद हालात से जूझती रही हों!
विस्तृत टिप्पणी देने के लिए आभार ,शेख सरजी।
अच्छी लघुकथा हुई है आ० बबिता गुप्ता जी, बधाई स्वीकार करें.
आभार, योगराज सरजी।
मुह तरमा बबिता साहिबा, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
आभार, तासिक सरजी।
आदरणीया बबिता जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.
आभार, मिथिलेश सरजी।
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