आदरणीय साथिओ,
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प्रदत्त विषय पर बढ़िया रचना आ बबिता गुप्ता जी, माँ कैसे बर्दास्त कर सकती है बच्चों की मौत को. बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
आभार, विनय सरजी।
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीया बबिता जी , हार्दिक बधाई|
आदरणीय बबीता गुप्ता जी बहुत बहुत बधाई स्वीकार किजिये सादर
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय बबिता जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
समाधान
बहुत पहले की बात है । एक राजा था जो अपनी प्रजा को हमेशा खुश रखता था । राज्य के सभी मंत्रियों और अधिकारियों को सख्त हिदायते थी की राज्य में रहने वाले किसी भी नागरिक को कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए । राज्य के सभी निवासी बहुत ही सुखी और संतुष्ट थे ।
पर क्या राजा स्वयं सुखी और संतुष्ट नहीं था । वह जहां भी जाता उसके पैसों में धूल लग जाती जिससे वह बहुत परेशान था । उसके महल के अंदर हर समय झाड़ पोंछ होता रहता था । महल के नौकर-चाकर हर समय इस प्रयत्न में लगे रहते की राजा को कभी किसी भी चीज पर धूल दिखाई न दे । अगर वह महल के बाहर निकलता तो उसके आगे आगे भिश्तियों का एक दल चलता जो सड़क पर पड़ी धूल पर जल का छिड्काव करता चलता । फिर उसके ऊपर जाजिम बिछा दी जाती ताकि राजा उसपर ही चले और उसके पैरों में धूल न लगे ।
लेकिन धूल पर किसी का क्या जोर । कहीं न कहीं धूल से वास्ता पड़ ही जाता । थक हार कर राजा ने मुनादी करवा दी – "जो भी धूल के कथं कर देगा उसे मैं अपना आधा राज-पाट दे दूंगा ।"
बहुतेरे लोग भाग्य आजमाने आए । किसी ने कहा "राज्य की धरती को कालीन से मढ़ दिया जाए" – तो कोई बता गया "राज्य के हर सड़क पर नहरें बनवा दी जाएँ और उसमें नाव चलवा दी जाए ताकि कहीं भी धूल न दिखे ।" किसी ने कुछ सुझाया तो किसी ने कुछ । लेकिन कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर सका । फिर एक दिन बहुत ही गरीब सा दिखने वाला चीथड़ों में लिपटा व्यक्ति उसके दरबार में आया । अपने जान की सलामत मांग कर उसने एक समाधान सुझाया – "महाराज आपके पैरों को ही मढ़ देता हू ताकि उसपर धूल ही नहीं पड़ेगी ।" उसकी बात पर राजा के दरबारी उसे मारने के लिए दौड़े । लेकिन उसने जान की सलामत मांगी हुयी थी । उसने राजा से एक मौका दिये जाने का अनुरोध किया । उसका अनुरोध स्वीकार हो गया । फिर उसने राजा के पैरों के नाप की जूतियाँ बना कर उन्हें पहना दिया और कहा – "महाराज अब आप कहीं भी जाएँ, आपके पैरों में धूल नहीं लगेगी ।
जूतियाँ पहन कर राजा कई कदम चला और बड़ा खुश हुआ – "अरे वाह ! ये तो कमाल हो गया । इसको पहनकर तो सच में पैरों में धूल नहीं नहीं लग रही ।"
और फिर इस तरह जूतों का आविष्कार हुआ ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
बढ़िया ज्ञानवर्धक रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आ नीलम उपाध्याय जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय विनय कुमार जी।
आदाब। विषयांतर्गत बहुत ही दिलचस्प व जानकारीवर्धक रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा। बढ़िया समाधान सूझबूझ भरा! लेकिन यह तो बोध कथा हुई न। (चिर-परिचित)!
हालांकि कुछ बदलाव/कटौती के साथ इसे लघुकथा में आप बदल सकती हैं यदि संचालक महोदय अनुमति देवें।
आदरणीय शविकः उस्मानी जी, बहुत बहुत आभार।
बेहतरीन मनोरंजक, ज्ञानवर्धक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया नीलम दी।
आदरणीया बबितगुप्त जी, बाबत बहुत आभार।
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