For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्लेन उड़ाती लडकियां

प्लेन उड़ाती लडकियां

(लघुकथा)

एयरोनॉटिकल शो। किस्म किस्म के हवाई जहाज़ आसमान में करतब दिखाते उड़े जाते हैं। अधिकतर प्लेन लड़कियां उड़ा रही हैं।

"पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी...।" एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है।

लड़कियां आसमान में प्लेन उड़ा रही हैं। लड़कियां आसमान छू रही हैं। लड़कियों का आत्मविश्वास आसमान पर है और एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है, "पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी।"

लोग कहते हैं, “लड़कियों को पंख लग गये हैं। लड़कियां परियाँ बन गई हैं।”

"एक आवश्यक सूचना..." एक अनाउंसमेंट हो रहा है।

सब कुछ स्थिर हो गया है। उड़ते हुए हवाई जहाज आसमान में ही ठहर गए हैं। समय थम गया है और एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है, "पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी।"

"एक आवश्यक सूचना... लड़कियां अपने घर पहुँचें... उनके माता पिता उनका इंतजार कर रहे हैं। लड़कियां अपने घर पहुंचें... रिश्ते वाले देखने आये हैं। लड़कियां अपने घर पहुंचें..." अनाउंसमेंट लगातार जारी है।

वे प्लेन जिन्हें लड़कियां उड़ा रही हैं, एक एक करके ज़मीन पर गिरने लगे हैं; और एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है, "पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी।"

... "यह तो केवल एक दु:स्वप्न है।" मनोचिकित्सक कहता है।

"हां..., लेकिन सपनों का स्रोत तो हमारा अपना परिवेश होता है न?" मैं पूछता हूँ।

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 17, 2019 at 4:46pm

आद0 MirzaHafizBaig जी सादर अभिवादन। बहुत बढ़िया सन्देश परक लघुकथा लिखी आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by vijay nikore on March 16, 2019 at 3:17am

बहुत ही अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, जनाब मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग साहिब ।

Comment by Nita Kasar on March 15, 2019 at 8:59pm

हमारा अपना परिवेश होता है,तो परवरिश के प्रति ज़िम्मेदारी भी होती है।उन्है बुलंदियों की ऊँचाई छूने के अवसर मुहैया करना भी परिवार की ज़िम्मेदारी होती है ।सारगर्भित कथा के लिये बधाई आद० मिर्ज़ा हाफ़िज़ बैग जी ।

Comment by Mirza Hafiz Baig on March 12, 2019 at 4:22pm

जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आदरणीय तेजवीर सिंह साहब, बहन नीलम उपाध्याय और मोहतरम जनाब समर कबीर साहब मैं दिल से आप सब का शुक्रगुज़ार हूं, आप सब ने इसे पढ़ा और अपनी कीमती राय दी। 

Comment by Samar kabeer on March 12, 2019 at 12:01pm

जनाब मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on March 11, 2019 at 2:55pm

आदरणीय मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग जी, नमस्कार। बेहतरीन लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 10, 2019 at 2:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग जी। बेहतरीन मनोवैज्ञानिक लघुकथा।बड़ी बेबाकी से समाज को आईना दिखाया है आपने।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2019 at 8:56pm

आदाब। क्या कहूं साहिब। साइक्लोज़िकल शो! गर्ल/वुमन-हरेशमेंट शो!  पतंग शो! उड़ती-उड़ाती, कटती-कटवाती पतंगें! परम्परागत सामाजिक ढांचे में बंधती, लिपटी, लिपटवाती लड़की, युवती, औरत! ढाक के तीन पात। समानता, विकास पर ग़ज़ब सांकेतिक दृष्टि! बेहतरीन सृजन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service