आदरणीय साथिओ,
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सच्ची देशभक्ति को जाग्रत करती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय तासिक सरजी ।
जागृति
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-मैं तुम्हें छाँह देता हूँ।जिंदगी की आस हूँ।.....रहूँगा भी.....।' छतनार बरगद दंभी आवाज में प्रलाप कर रहा था। कुछ अशक्त पक्षी घोसलों में बैठे हुए, और कुछ अति दुर्बल पशु उसकी जड़ में बैठे हुए उसे सुन रहे थे।
-औरों के हिस्से की हवा और रोशनी भी तो डकारते हो,भाईजान', एक आवाज गूँजी।
-कौन हो तुम?ऐसी बदतमीजी की सजा मेरी रिआया देगी तुम्हे',बरगद गुर्राया।
-गुस्ताखी माफ़ मेरे भाई!मुझे नीम कहते हैं।जरा कड़वा हूँ।
-तभी तो ऐसी नागवार बातें करते हो।
-यह नागवारी आपकी खुदगर्जी की मिसाल है भाईजान।
-कैसे?
-क्योंकि जिन्हें तुम अपनी रिआया कह रहे हो,उन्हें तुमने उनके पैरों पर खड़े होने की नौबत ही न आने दी।बस कुछ ले-देकर राज करते रहे।
-यह सब गलत है।मैंने इन्हें छाँव दी है,जिंदगी दी है।
-जिंदगी तो परमात्मा की नेमत है।और महज छाँव से मजबूती नहीं मिलती।धूप चाहिए,धूप।और तुम वह पूरा का पूरा डकार जाते हो।
-और तुम?
-मैं आरोग्यकारी हूँ।
-तीखापन से?
-हाँ।मेरा तीखापन सच्चाई का है।इमानदारी का है,कर्मठता का है।और मेरी गुठली खुद में मिठास सँजो कर रखती है।यह सेहत और सौहार्द्र की प्रतीक है।
-बस करो।मैं ऐरे-गैरों के मुँह नहीं लगता।मेरी जनता मेरे साथ है।पूछ लो।
-नहीं रे नासपीटे,कभी नहीं।हम तो अपने बच्चों की राह देख रहे हैं,जो नीम की गिलौरियाँ लेने गये हैं।वे गिलौरियाँ ही हमारे ध्येय हैं,हमारे चंगापन के कारक हैं', बरगद के दायरे में पड़े पंछी एवं मवेशी समवेत स्वर में आवाज लगाने लगे।
"मौलििक व अप्रकाशित"
आदाब। बहुत ही उम्दा और ज्ञानवर्धक विचारोत्तेजक रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। क्या बरगद के वृक्ष की जड़ से लेकर फल/छाल/बीज/शाखा किसी का जड़ी-बूटी या चिकित्सा आदि में कोई उपयोग नहीं होता?
आदरणीय उस्मानीजी,बहुत बहुत शुक्रिया आपका।यहाँ बरगद के केवल ढाँप लेने(सघन छाँव) की प्रवृत्ति पर सांकेतिक तौर पर विचार करने का प्रयास किया गया है।सफलता-असफलता का विवेचन सुधी पाठकों का अधिकार है।
जी। इस सफल लघुकथा संबंधित एक जानकारी भर चाही है मैंने।
जी,दवाएँ तो वस्तुतः वनस्पतियों वाली ही ज्यादा कारगर होती हैं।बैच फ्लावर से सम्बंधित कई लघुकथाएँ इस मंच को समर्पित कर चुका हूँ मैं।
जानकारी हेतु शुक्रिया जनाब।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत शुक्रिया एवं आदाब आदरणीय समर जी।
वाह, बहुत बढ़िया और प्रभावशाली रचना लिखी है आपने प्रदत्त विषय पर, सबसे बेहतर तो वही होता है जो औरों को भी बराबरी का मौका दे. बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिए आ मनन कुमार सिंह साहब
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