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/इश्क का दरिया हमे पार जो करना है हिलाल
कश्तिये इश्क सलीके से चलायी जाए !!/
वाह! इस मकते का क्या कहना, हिलाल भाई. बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें.
उनकी आमद के चर्चे हैं
गुलशन गुलशन फूल खिले हैं
हिलाल भाई
जिसमे सच्चाई की लज्ज़त हो वफ़ा की खुशबु !
मुंह से बस ऐसी क़सम वक़्त पे खायी जाए !!
इस शेर ने तो जान ही ले ली.....बाकी के शेर भी ताक में है कि कब होश में आये और फिर से इसकी जान ले ली जाए| लाजवाब......
हिलालभाई, आपकी ग़ज़ल पर मेरा कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना होगा.
आप मेरी शुभकामनाएँ स्वीकारें.
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