आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत शुक्रिया आ
आदरनीय विनय जी , बहुत सुंदर लघुकथा हुई, आप की लघुकथा में गाँव व् शहर के स्लम जिन्दगी का विवरण कर दिया इस तरह की जिन्दगी लोग जी रहे हैं , मगर आस का पल्ला नहीं छोड़ते
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आ मोहन बेगोवाल जी
आदरणीय विनय जी बेहतरीन लघुकथा ।बहुत बधाई .।।
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आ
बहुत सुंदर आद : विनय कुमार जी, शहरी जीवन की आभासी जिन्दगी की अपेक्षा गाँव के व्यवहारिक जीवन को सामने रखने का सुंदर प्रयास करती है रचना, लघुकथा का अंत आकर्षक बना है, बधाई स्वीकार करें भाई जी
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।सामाजिक विसंगतियों पर आपकी लेखनी बहुत सशक्त है।आपकी प्रेरणा से ही इस क्षेत्र में प्रवेश किया था।अभी भी वही अनुसरण है।आपसे बहुत कुछ सीखा है।
इस मनोबल बढाती टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आ तेज वीर सिंह जी. मुझे बेहद ख़ुशी है कि आप मेरे लिए ऐसे विचार रखते हैं
इस मनोबल बढाती टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आ वीर मेहता जी
बहुत बढ़िया रचना आदरणीय विनय सर ,बधाई आपको इस रचना के लिए ,सादर
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आ
उम्दा रचना हेतु बधाई आदरणीय विनय कुमार जी
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