सीख - लघुकथा -
गाँव के कुछ जाने माने लोग हरी राम के घर आ धमके,"भाई हरी राम जी, आपने अपनी भेंसें बिना कोई जाँच पड़ताल किये किसी अजनबी इंसान को बेच दीं?"
"भाई लोगो, मेरी माली हालत आप लोगों से छिपी नहीं है। बाढ़ के कारण मेरा घर द्वार और खेती सब तबाह हो गया। खुद को खाने को नहीं था तो भेंसों को क्या खिलाता। अभी तो वे दूध भी नहीं दे रहीं थीं।"
"लेकिन भैया बेचने से पहले उस आदमी की पृष्ठ भूमि का तो पता कर लेते?"
"क्यों भाई ऐसा क्या गुनाह कर दिया उसने?"
"अरे भाई, वह एक कसाई है जिसे तुमने भेंसे बेची हैं।"
"चलो मान लिया गल्ती हो गयी। ये तो जानवर थीं। मगर जब दो दिन पहले बुधिया ने अपनी सोलह साल की बेटी पचपन साल के विधुर के गले बाँध दी थी तब आप लोगों का विवेक कहाँ गया था?"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, लघुकथा की कसावट के साथ सन्देश भी उपयुक्त है! बधाई स्वीकारें!
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, लघु कथा अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।
संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।
तर्कसंगत , आदरणीय तेजवीर सिंह जी , बधाई इस लघु-कथा हेतु , सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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