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रंग
'अरे !मीना कहा गई ?दिख नही रही ।"
"पता नही माँ अभी तो यही थी माँ ।"
"कमरे में देखती हूँ ।अरे !मीना क्या हुआ ?तू रो रही है ,चल नीचे सब नीचे है होली है बेटा आज।"
"हाँ ..माँ पर मेरा नीचे क्या काम माँ में तो विधवा हूँ न और अभागन हूँ पहली होली ही मेरी ........सिसकते हुए सास से लिपट गई।"
सास ने प्यार से कहा " मेरे बेटे ने अपने खुन के रंग से भारत माता को सजाया है तो ऊसकी माँ अपने बेटे की अमानत के जीवन को रँगहीन कैसे होने देगी तेरे जीवन मे फिर से रँग ..हम भरेगे तू बहू ही नही बेटी भी है ना हमारी।"
मौलिक व् अप्रकाशित
मोहतरमा बबिता चौबे साहिबा , ममता के रंग की अच्छी रचना के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
प्रणाम बबीता जी। अ बिग सेल्यूट टू यू। मुझे नहीं लगता आपकी यह रचना पढ़ कर इससे ज्यादा कुछ कहने की ज़रूरत है।
हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता जी !बहुत शानदार प्रस्तुति!
सुन्दर कथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया बबिता जी
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