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अति उत्तम सोच ,रश्मि जी। आपकी रचना आश्वस्त करती है कि सविताओं के बेटे बड़े होंगे तो दुनिया का रंग-ढंग ही बदल जाएगा।इसी तरह महिलाओं का लेखन चलता रहा तो वह दिन ज्यादा दूर भी नहीं। ' मौसी ' की जगह 'मासी ' जैसे आंचलिक शब्द का तड़का तुस्सी ला दित्ता , रश्मि जी। बढ़िया।
हार्दिक बधाई आदरणीय रश्मि जी !बेहतरीन प्रस्तुति!एक तलाक़शुदा औरत को समाज में सदैव हेय दृष्टि से देखा जाता है!यदि उसे अपनी जिम्मेवारियों का सुनियोजित तरीके से निर्वाह करना है तो उसे कठोर निर्णय लेने ही होंगे!
बेहद सार्थक सन्देश दे रही है आपकी यह लघुकथा आ० रश्मि तरीका जीI इस अर्थगर्भित लघुकथा हेतु बहुत बहुत बधाईI
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