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वह इसलिए कि आपने रचना बजाय मेन थ्रेड के कमेन्ट बॉक्स में पोस्ट कर दीI
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता रॉय जी!राजनीति में कार्यकर्ताओं का किस तरह दुरूपयोग करके उनका दोहन किया जाता है!एक घिनौने सच को उजागर करती सुन्दर लघुकथा!
हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी!बेहद सूक्षम और मनोहारी लघुकथा!बहुत कुछ कह दिया!सादर!
वाह क्या जबरदस्त रचना है आपकी . दो युग एक रंग और दो विपरीत भाव .बेहद उम्दा सोच, बधाई आदरणीय समर जी .
राजनीत की डगर की रंग बिखेरती आपकी एक समयपरक रचना. बधाई काँता जी एक अच्छी रचना के लिए .
इन्सान को कूकर बना देने वाले राजनैतिक रंगों को उकेरने के लिए बधाई आदरणीय कांता जी।
आप लघुकथा विधा पर हाथ आज़मा रहे हैं , देख कर भला लग रहा है ,आदरणीय समर कबीर जी।
बहुत कम शब्दों के सहारे दो स्थितियों की तुलना करके आपने कई काल-खण्डों को समेट दिया ,यह आपकी क्षमता है।
( यह कमेंट कांता जी की रचना के साथ पता नहीं क्यों दिख रहा था , इसलिए दोबारा पोस्ट कर रहा हूँ )
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