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ख़ुशी का रंग फूले से और गम का ठंडी सफ़ेद बर्फ से इन दोनों प्रतीकों के माध्यम से रची गई सुन्दर कथा ,बधाई स्वीकार करें आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर ,
अनुमोदन केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभाजी..
आदरणीय सौरभ सर, बहुत ही प्रभावोत्पादक लघुकथा लिखी है आपने. जीवन के इन्द्रधनुषी संवेदनाओं का बर्फ की शफ्फाक़ रजाई की ओर बढ़ना और वैधव्य जीवन में नारी की स्थिति का मनोविश्लेषण करते हुए, उसे शाब्दिक करना आपके ही बूते की बात है. इस शानदार लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर नमन
आदरणीय मनोभावों को उकेरने में प्रयुक्त शब्द , अदबदा कर खिले फूल, रजाई गहरे पैठ कर गऐ ,(परंतु लिखते नहीं बने)
इस सुंदर रचना से परिचित कराने हेतु आभार ।नमन ।
आदरणीय पवन जैन जी, प्रस्तुति को अनुमोदन केलिए हार्दिक धन्यवाद.
(परंतु लिखते नहीं बने) .. इस कूट वाक्य का अर्थ मैं नहीं समझ पाया.
सादर
आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी संवेदनशीलता ने इस प्रस्तुति को सम्यक मान दिया है. मैं हार्दिक रूप से धन्यवाद कह रहा हूँ.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ सर, तनिक व्यस्तता के चलते आयोजन में सहभागिता नहीं निभा पाया. लेकिन आश्वस्त हूँ कि सभी प्रस्तुतियों से गुजरने और प्रतिक्रिया देने का अवसर मिल गया. सादर
मुखर अनुमोदन केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया अर्चनाजी.
स्वीडेन की सफ़्फ़ाक बर्फ और वैधव्य को क्या बढ़िया पिरोया है आपने, बेहतरीन प्रस्तुति विषय पर| बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय विनय कुमारजी, प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति ने संतुष्ट किया है. हार्दिक धन्यवाद
पति के देहावसान के बाद कोई रंग अच्छा ही नहीं लग रहा, गहन प्रेम को दर्शाती आपकी इस लघुकथा और आपको दोनों को नमन आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सर| गजब का सृजन हुआ है|
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