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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-112

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 112वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं "

221     2121      1221        212 

मफ़ऊलु       फ़ाइलातु    मुफाईलु    फाईलुन

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

रदीफ़ :- भी नहीं  
काफिया :- आर ( बेकार, इंकार, इतवार बाज़ार आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस इनायत का बहुत बहुत शुक्रिया

टाइप में उनका दो बार टाइप हो गया है 

पोस्ट करते वक्त पता नहीं कैसे हो गया 

आद0 तस्दीक अहमद साहब सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। कुछ अशआर बेहद पसंद आये। बहुत बहुत बधाई और मुबारकबाद।

जनाब सुरेंद्र नाथ साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस इनायत का बहुत बहुत शुक्रिया 

आ0 तस्दीक़ अहमद साहिब बहुत अच्छी ग़ज़ल। बहुत बहुत बधाई।

मुहतरम जनाब बासुदेव साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

जनाब दण्ड पानी साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस इनायत का बहुत बहुत शुक्रिया 

तस्दीक़ अहमद साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत  बहुत बधाई 

जनाब अनीस साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस इनायत का बहुत बहुत शुक्रिया 

आदरणीय तस्दीक अहमद साहब अच्छी ग़ज़ल हुई बधाइयां स्वीकार करें इस शेर को देखें शायद वहृ में नहीं है बाकी गुणीजन बताएंगे।


आज उनकी बोल चाल में तकरार भी नहीं l

'आज उनकी बोल चाल में तकरार भी नहीं'

अमित जी,ये मिसरा बह्र में है, 'आज उनकी' में अलिफ़ वस्ल किया गया है,इसे "आजुनकी"पढ़ें ।

धन्यवाद आदरणीय।

कृपया करके अलिफ वस्ल की प्रक्रिया को विस्तार में बताएं या कोई लिंक शेयर करें जहां हम इसके बारे में पढ़ सकें धन्यवाद।

अलिफ़ वस्ल के बारे में जानकारी के लिए ओबीओ के समूह "ग़ज़ल की बातें" में इस पर आलेख होगा,उसे देख लें ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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