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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 112 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-113

विषय - "जीवन के रंग"

आयोजन की अवधि- 14 मार्च 2020, दिन शनिवार से 15 मार्च 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 मार्च 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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सादर हार्दिक आभार आदरणीया

आ. भाई सतविन्द्र जी, सादर अभिवादन ।प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

सादर आभारं आदरणीय धामी जी

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, प्रदत्त विषय पर सुंदर गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिरभी / पचे हाजमे की गोली से, दूजा भूखा अंग / समझ पाना कठिन है. सादर 

जीवन के रंग - दोहे


रंग जहाँ आनन्द का , मन को करे अनंग
करे प्रेम की भावना, जीवन को सतरंग।१।

*
कहीं बरसती आँख हैं, कहीं छाँव सह धूप
जीवन  के  जो  रंग हैं, हर  मन  का प्रारूप।२।

*
व्याकुलता मन में कभी, उपजे कभी उमंग
कभी क्रोध की कालिमा, ढब जीवन के रंग।३।

*
अपनेपन का  रंग  दे, सदा  ताल से ताल
अहसासों के रंग से, हर जीवन खुशहाल।४।

*
आयी कोई भी खुशी, हुआ चटख हर अंग
जीवन रहा उदास  तो, झलका  नीरस रंग।५।

*
नदी खेत अमराइयाँ, बच्चे,तितली,फूल
है जीवन के रंग में, शामिल सूखी धूल।६।

*
घूसर विरही की छटा, हरा सजन का संग
वैरी मन  काला  करे, जीवन  का  हर रंग।७।

*
जीवन  ऐसा  पुष्प  है, जिसमें  रंग  अनेक
मानव तेरे हाथ यह, जिसका रख अतिरेक।८।

*
काले मन के रंग से, हुआ मलिन हर अंग
बौछारों  से  प्रेम  की, निखरे  जीवन  रंग।९।

*
एक अकेला मन रहा, जिस पर पूरा भार
जीवन के हर रंग को, नफरत रही उतार।१०।

*
मौलिक/अप्रकाशित

जीवन में हैं रंग जो, सबका किया बखान।

खूब बधाई लीजिए, हे धामी श्रीमान।।

दोहों को सम्मान के, साथ मिला जो प्यार
उसके हित है आप का, राणा जी आभार।।

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रदत्त विषय पर भिन्न रंगों की छटा बिखेरते सुंदर दोहे रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा के लिए आभार ।

ग़ज़ल 

***

रेत- कण से इक घरौंदा मैं बनाता हूँ
अनछुए- से ख्वाब फिर उसमें सजाता हूँ।1

रुख परखना हो गया मुश्किल जमाने का
कह रहे वे दूर की कौड़ी उठाता हूँ।2

कोशिशें कितनी हुई हैं चाँद पाने की,
हर दफा बिखरा,रुका कब?आजमाता हूँ।3

हर लहर आभार कहकर लौट जाती है
प्यास का मारा हुआ मैं तिलमिलाता हूँ।4

बादलों की बदगुमानी का रहा कायल
बूँद पड़ जाये जरा नजरें गड़ाता हूँ।5

कह गयी बदली हवा अब रुत बदलनी है
मैं लुटा गठरी,हमेशा ही लजाता हूँ।6

सच कहा जाता नहीं, सब लोग कहते हैं,
आँच अंतर की जलाता हूँ,बुझाता हूँ।7

रास्ते मुश्किल,भले जितना अँधेरा हो,
रोशनी के वास्ते बढ़ता ही' जाता हूँ।8
" मौलिक  व अप्रकाशित"

आदरणीय मनन कुमार जी, सादर नमन। मानीखेज़ ग़ज़ल कही है आआपने। सादर बधाई

आभार आदरणीय सतविंदर जी।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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