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दिल छू लिया आपकी इस रचना ने आदरणीय सबसे ज्यादा इस पंक्ति ने //‘वह घाट से लौटा तो बहुत अपसेट था I इसलिए उसने ‘वेव’ में सिनेमा देखने का प्लान बना लिया I अब सब लोग वही से खाना खाकर लौटेंगे I’//- हार्दिक बधाई इस रचना पर आपको आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी सादर
बहुत ही मार्मिक लघु कथा लिखी है आदरणीय आपने दिल छू गई आज वो पंक्ति याद आ गई ...नारी जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आँखों में पानी ...ये आँखों का पानी सदा ही साथ रहा है ..
हार्दिक बधाई आपको
सच्चा साथी / साथी - विषय पर आधारित लघु कथा
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"अरे रुको रुको !" अनीता ज़ोर से चिल्लाई , "उससे हाथ मिलने जा रहे हो , जबकि तुम्हें पता है कि तुम एच आई वी पीड़ित हो । कितनी बार मना किया है तुम्हें कि कहीं न जाया करो , लेकिन तुम हो कि मानते ही नहीं " बड़बड़ाते हुये अनीता लगभग घसीटते हुये उत्पल को अंदर ले गई । उत्पल ने समझाया , "ऐसा नहीं है हाथ मिलने से कभी एड्स नहीं फैलता और न ही कहीं बाहर आने जाने से , और समय रहते पता चल जाए तो उसका इलाज भी संभव है और तुम हो कि बेवजह सनक जाती हो । " "वो जो भी हो , मैं नहीं चाहती कि लोग तुम्हें लेकर ताने मारे । " अलमारी साफ करते हुये अनीता बोली । अचानक एक लिफाफे पर उसका हाथ पड़ा उसने खोलकर देखा तो अवाक रह गई उसके हाथ से सारे कागज छूट कर जमीन पर गिर पड़े । एड्स का शिकार उत्पल नहीं वो खुद थी और पिछले एक महीने से उत्पल घर मे बिना वजह बैठे थे । उत्पल ने कहा ," मैं तुम्हें ये सम्झना चाहता था कि ये कोई लाइलाज बीमारी नहीं है समय रहते पता चलने पर इसका इलाज संभव है । तुम आम इंसान की तरह सारे काम कर सकती हो । जैसा कि अब तक कर रही थी । " अनीता बड़े सम्मान से अपने पति की ओर देखती रह गई ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीया अर्चना जी यहाँ तो मैंने उसके मनोबल को उठाने की बात कही है आपने मनोबल गिरने की बात कह दिया , शायद आप कुछ और कहना चाहती थी , कुछ और कह गई । सादर
एक गंभीर बिषय पर असरदार तरीके से जीवन साथी को संबल एवं समझाइश का तरीका सुगमता से प्रस्तुती हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय।
आभार आदरणीय पवन जैन जी
आपका हार्दिक आभार अदरणीय शेख शहजाद जी
लघुकथा में हरेक संवाद अलग पैरे में होता है आदरणीय अनुपम बाजपाई जी . इसे इस रूप में पोस्ट कर सकते है.
सादर.// वैसे लघुकथा बहुत शानदार रची है आप ने . बधाई आप को.
सच्चा साथी
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"अरे रुको रुको !" अनीता ज़ोर से चिल्लाई , "उससे हाथ मिलने जा रहे हो , जबकि तुम्हें पता है कि तुम एच आई वी पीड़ित हो । कितनी बार मना किया है तुम्हें कि कहीं न जाया करो , लेकिन तुम हो कि मानते ही नहीं " बड़बड़ाते हुये अनीता लगभग घसीटते हुये उत्पल को अंदर ले गई ।
उत्पल ने समझाया , "ऐसा नहीं है हाथ मिलने से कभी एड्स नहीं फैलता और न ही कहीं बाहर आने जाने से , और समय रहते पता चल जाए तो उसका इलाज भी संभव है और तुम हो कि बेवजह सनक जाती हो । "
"वो जो भी हो , मैं नहीं चाहती कि लोग तुम्हें लेकर ताने मारे । " अलमारी साफ करते हुये अनीता बोली ।
अचानक एक लिफाफे पर उसका हाथ पड़ा उसने खोलकर देखा तो अवाक रह गई उसके हाथ से सारे कागज छूट कर जमीन पर गिर पड़े । एड्स का शिकार उत्पल नहीं वो खुद थी और पिछले एक महीने से उत्पल घर मे बिना वजह बैठे थे ।
उत्पल ने कहा ," मैं तुम्हें ये सम्झना चाहता था कि ये कोई लाइलाज बीमारी नहीं है समय रहते पता चलने पर इसका इलाज संभव है । तुम आम इंसान की तरह सारे काम कर सकती हो । जैसा कि अब तक कर रही थी । "
अनीता बड़े सम्मान से अपने पति की ओर देखती रह गई ।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
आभार आपका अ0 राहिला जी
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