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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-123

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 123वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब क़ैसर-उल जाफ़री साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"लोगों ने फूलों के बदले तलवारें मँगवा ली थीं "

22  22  22  22   22   22   22   2 (कुल जमा 30 मात्राएं)

 

फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन     फ़ेलुन   फ़ा 

बह्र:  मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 16-रुक्नी (बह्र-ए-मीर) 

रदीफ़ :-  थीं (बहुवचन)
काफिया :- आली( काली, जाली, डाली, पा ली , खा ली, खाली, वाली आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 सितंबर दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 26 सितंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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सुधीजनों का स्वागतम 

"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-123 में आपका स्वागत है ।

सादर अभिवादन।

आदरणीय उस्ताद मोहतरम आदाब,चरण स्पर्श,आपका आशीर्वाद और स्नेह हम सबको यूं ही मिलता रहे,आप यूं ही हमारा मार्गदर्शन करते रहें, आपका भी स्वागत है आदरणीय उस्ताद मोहतरम, कृपा दृष्टि बनाए रखें।

आद.समर भाई जी आदाब।

आदरणीय जनाब पाण्डेय जी और मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, आपका भी स्वागत है एवं आपको बहुत बहुत धन्यवाद। 

सादर अभिवादन आदरणीय।

आ. भाई सौरभ जी , सादर अभिवादन।

आद.सौरभ जी, नमस्कार।

आदरणीय सौरभ जी नमस्ते।

2222-2222-2222-222

चाल शराबी होंट गुलाबी बातें भी मतवाली थीं 

मय छलकाती मस्त निगाहें जैसे मय की प्याली थीं 

परियों की रानी थी शायद नूर सरापा था उस पर 

दूध सी रंगत चाँद सा चहरा ज़ुल्फ़ें रेशम काली थीं 

गुलचीं भी सरशार हुआ था गुल को भी था होश कहाँ 

साक़ी जब गुलशन से गुज़रा बहकी सारी डाली थीं

कुछ तो बात अलग थी हम में कुछ तो ढंग निराले थे 

ऐसे ही तो आप न हम पे जान छिड़कने वालीं थीं 

सब कहते थे बदलेंगे वो आ जाएगा प्यार उन्हें

पर लगता है जैसे वो सब बातें ख़ाम-ख़याली थीं 

बचपन की तो बात अलग थी दौर अलग था वो यारो

दिन भर ईद सी रहती थी तब रातें भी दीवाली थीं 

गाँव में शादी का मौक़ा था ख़ूँ-रेज़ी थी सरहद पे  

लोगों ने फूलों के बदले तलवारें मंगवा ली थीं 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । एक उम्दा गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई । 

  • चौथे शे'र के सानी मिसरे में वालीं को वाली कर लें । साथ ही तीसरे शे'र केसानी मिसरेे में सारी डाली के विषय मेें भी संशय है । मेर ज्ञान के हिसाब से डालियाँँ होना चाहिए । सादर...

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"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
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"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
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"स्वागतम"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

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