आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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देश की स्थिति पर आपकी ये तस्वीर भी एक सटीक लघुकथा का आकार पायी है आदरणीय राजेन्द्र जी , बहुत बहुत बधाई आपको .
आदरणीय राजेन्द्र जी, लघुकथा के माध्यम से आपने देश की आज की तस्वीर बना दी. बहुत खूब. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई
खंडहर
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पहाड़ी पार करते ही सेनापति ने सेना को हाथ के इशारे से रुकने का आदेश दियाI फिर अपना घोडा राजा के पास रोककर, सामने की तरफ इशारा करते हुए उत्साह भरे स्वर में कहा:
"वो देखिए राजन हमारी मंजिल! हम भारत पहुँच गए हैI"
सामने का दृश्य देख राजा के चेहरे पर आश्चर्य और अविश्वास के मिश्रित भाव उभर आएI
"क्या सचमुच यह वही भारत है जहाँ हम पहले भी आए थे सेनापति?"
"जी हाँ महाराज! यह वही भारत है, हम इसके चप्पे चप्पे से वाकिफ हैंI"
"लेकिन भारत देश तो बहुत विशाल हुआ करता था, हम किसी गलत जगह तो नहीं आ गए?"
"नहीं नहीं महाराज! हम बिलकुल सही जगह आए हैं, यह देश भारत ही है!"
"हर तरफ खून खराबा, गरीबी और ये भूखी बस्तियाँ, नहीं नहीं! ये तो हरगिज़ भारत की पहचान नहीं थीI"
"वो देखिए भारत की पहचानI पीपल और देवदार के विशाल और शानदार वृक्षI"
हरे भरे वृक्षों की कतारों को गौर से देखते हुए राजा ने पूछा:
"मगर इनकी हर शाख पर सोने की चिड़िया की जगह सिर्फ उल्लू ही क्यों दिखाई दे रहे हैं?"
यह सुनकर सेनापति अचकचाया, प्रश्न अनसुना करते हुए दूसरी तरफ उँगली का इशारा करते हुए बोला:
"उधर देखिए महाराज! हर तरफ वही भव्य मंदिर, गिरजे और मस्जिदेंI"
"इन धर्म स्थानों से तो ईश्वरीय वाणी सुनाई दिया करती थी, मगर अब ये नफरत का ज़हर क्यों उगल रहे हैं?"
"समय का फेर है महाराज! लेकिन आप विश्वास करें यह भारत ही हैI" सेनापति ने पुन: आश्वस्त करने का प्रयास कियाI
"अगर यह भारत है, तो अब तक हमें रोकने के लिए कोई पोरस आगे क्यों नहीं आया?"
"क्योंकि दुर्भाग्य से अब यहाँ पोरस पैदा नहीं होते, सिर्फ आम्भी जैसे गद्दार ही पाए जाते हैं महान सिकन्दर!"
यह सुनते ही सिकंदर की आँखें सजल हो गईं, चेहरे का तेज़ जैसे अचानक मद्धम सा पड़ गयाI
"फ़ौज को वापिस यूनान लौटने का हुक्म दिया जाए सेनापति सेल्यूकसI"
"मगर भारत को लूटने के मंसूबे का क्या होगा?" ऐसा अप्रत्याशित आदेश सुनकर सेनापति चौंकाI
सिकंदर ने भारत की तरफ देखकर एक ठंडी आह भरी और बुझे से स्वर में उत्तर दिया:
"जो देश अपनों के हाथों पहले ही लुट पिट चुका हो, उसे हम क्या लूटेंगे?"
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(मौलिक और अप्रकाशित)
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आप ने बहुत सही तस्वीर पेश की है. जो अपनों के हाथों लूट चूका है उसे लूटने के लिए क्या बचा है. शानदार व उम्दा कथा आदरणीय भाई साहब.
बहुत बहुत धन्यवाद आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
इतिहास को समय के अनुसार लघुकथा में कह कर देश की सच्ची तस्वीर बता दी आदरणीय गुरूजी योगराज प्रभाकर जी सर आपने, //"मगर इनकी हर शाख पर सोने की चिड़िया की जगह सिर्फ उल्लू ही क्यों दिखाई दे रहे हैं?"// और गजब का पंच| नमन सर आपको|
रचना को मान देने के लिए दिल से शुक्रिया भाई चंद्रेश जीI
aadrniy bahut satik laghu katha hei.
aapki katha padh kar katha keise utrotar badhni chahiye ka hamare jaiso ke liye ek path se adhik hi mahtavpurn hei
हार्दिक आभार आ० राजेन्द्र गौड़ जीI
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