आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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रचना को समय और मान बख्शने के लिए दिल से आभार भाई मिथिलेश जीI
//जो देश अपनों के हाथों पहले ही लुट पिट चुका हो, उसे हम क्या लूटेंगे?//
क्या बात है, आदरणीय गुरुदेव आपकी लघुकथा किसी पाठशाला में प्रस्तुत पाठ की तरह है जिसे modal बना कर हम जैसे नव रचनाकार बहुत कुछ सीख और समझ सकते हैं. इस गोष्ठी में प्रस्तुत दो चार श्रेष्ठ लघुकथाओं में से एक हैं आपकी लघुकथा, बहुत बहुत बधाई आदरणीय गुरुदेव योगराज जी.
लघुकथा : तस्वीर
बाबूजी ने बेटे को बहुत ही लाड प्यार से पाला था किन्तु पता नहीं उनकी परवरिश में क्या कमी रह गयी थी कि बेटा धीरे-धीरे अपराध की दुनिया की ओर बढ़ने लगा और लाख समझाने के बावजूद भी बाबूजी उसे संभाल न सके.
आज दीवार पर लगी अपनी ही बड़ी सी तस्वीर को देख वह पिता से पूछ बैठा....
“बाबूजी यह दीवार पर आपने मेरी तस्वीर क्यों लगवा दी है ?”
“बस ऐसे ही बेटे, हाँ रात को बाज़ार से लौटते वक्त एक कृत्रिम फूलों की माला लेते आना”
“वो किस लिए बाबूजी ?”
“बेटा जिस मौत के रास्ते पर आजकल तुम्हारें पाँव चल रहे हैं संभव है कि शीघ्र ही उस माला की जरुरत आन पड़े”
बेटा बगैर कुछ बोले घर से निकल गया और शाम को अपेक्षाकृत शीघ्र घर लौट आया.
“बाबूजी यह लीजिये ताजे फूलों की माला और भगवान की तस्वीर पर चढ़ा दीजिये. मैं आपसे वादा करता हूँ कि कृत्रिम फूलों की माला की आवश्यकता अब आप को नहीं पड़ेगी”
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आदरणीय गणेश जी बहुत सुन्दर तस्वीर पेश की है आप ने . बधाई आप को .
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी.
आदरणीया नीता कसार जी, आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार.
वह लघु कथा सार्थक होती है जिसका समापन आदर्श पर हो | सुंदर सीख देती ऐसी ही लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी |
आपका आशीर्वाद सदैव उत्साहवर्धन करता है, बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण लडिवाला जी.
aadrniy sundr katha
kataksh bhi jagane ke liye kaam aa hi jata hei ydi bolne wala charitrvan ho to
बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेंद्र कुमार गौर जी.
बेटे को सुधारने का ये हथकंडा काम आया किन्तु सोचने की बात है ऐसा करते हुए पिता अन्दर से कितना टूटा होगा ..बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आ० गणेश बागी जी हार्दिक बधाई आपको |
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