आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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लघुकथा के इस प्रयास को पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी|
rप्रतीकों के माध्यम से प्रभावशाली कथा कही है आपने , बधाई स्वीका करें आप ,आदरणीय चंद्रेश जी
हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी!आपकी सोच और कल्पना शक्ति क़माल है!बेहतरीन प्रस्तुति!
लघुकथा के इस प्रयास पर आपके आशीर्वाद द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर|
लघुकथा के इस प्रयास को पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी|
लघुकथा के इस प्रयास को पसंद करने और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी|
तमाशबीन
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बड़े से कमरे में दीवार से लगे विशाल टीवी के सामने झकझक करते सोफे पर बैठे नेता जी आ रही तस्वीर जो की दिखा रही थी कि किस प्रकार एक विशाल मैदान में आयोजित एक विशाल जनसभा को पुलिस खदेड़ कर भगा रही हैं । सब लोग बड़ी संख्या में उपस्थित पुलिस को देख सहमें से इधर उधर रास्ता खोज रहे थे ।नेता जी खुश होते हुए कह उठे चलो यह तमाशा भी ख़त्म हुआ और प्रसन्न चित हो टीवी बँद ही करने वाले थे कि दर्श्य पर दिखने लगा जनता तमाश बीन न हो कर स्वयं विरोध का उद्घोष कर रही थी ।
तभी नेता जी के बुढ़े पिता जी ने कहा "तमाशा बड़ा बेरहम होता हैं कब कौन मदारी रोल बदलते देर नही ।"
मौलिक व अप्रकाशित
aabhar aap sabhi se kuch na kuch sikh hi hei yah sab
सच में कब मदारी बदल जाये कोई नहीं कह सकता । हार्दिक बधाई इस कथा के लिए आदरणीय राजेंदर जी
aabhar
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