आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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लगता है नेट प्राब्लम आज पूरी लघुकथाएं पढ़ने नहीं देंगी. सादर. सभी को .
बढ़िया कथा कहीं आपने । सादर ___/\__
सुंदर कथा हुई है आदरणीय Omprakash Kshatriya जी
विषय को सार्थक करती इस लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय ओमप्रकाश जी सर|
"दादू की सौगात"
शहर के सबसे बड़े अस्पताल के सामने बड़ी बड़ी गाड़ियों के बीच ठेले पर आये मरीज को देखकर लोग हैरान हो गये थे।और आपस मे काना फूसी करने लगे थे।
"यह देखो जरा अब चीटीयों के भी पंख निकल आये है ।शायद यह गमछाधारी जानता नहीं कि यह कितना मंहगा अस्पताल है।"
कोई नहीं भाईसाहब अभी देखना कैसे उल्टे पांव लौट कर आयेगा।वो कहावत है ना पास में नही दाने, और अम्मा चली भुनाने।
मरीज के अस्पताल के अन्दर जाते ही लोग किसी बड़े तमाशे की उम्मीद में अपना फोन विडियो मोड मे ले आये।
आपरेशन थियेटर का दरवाजा खुला औऱ फिर डाक्टर रामू के पास आकर बोले ।
"भगवान का शुक्र है कि आप सही समय पर अपने पिता को अस्पताल ले आये नहीं तो कुछ भी हो सकता था।पर अब आपके पापा खतरे से बाहर है। "
रामू ने अपने आंखों में उतर आयी नमी को सबसे छुपाते हुए अपनी बीबी का हाथ पकड़कर बोला।
"जानती हो सुलेखा जब दादू ने फालसे का बाग लगाया था तो पूरा गांव उन्हें पागल समझता था। पर आज वही फालसे 400 रूपये किलो बेच बेच कर मैं इतना समर्थ हो गया कि अपने बापू का अच्छा से अच्छा इलाज करा सका जाने क्यों लोग कहते हैं पैसे पेड़ पर नहीं लगते, लगाना अाना चाहिए बस, पैसे सच में पेड़ पर ही लगते हैं।"
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
WAH SO NEHA JI KATHA ACHCHI BAN GAI HEI KINTU KISANO KO VO MULY NAHI MIL PATA JO SAHRO ME HAM SAB DETE HEI
मोहतरमा नेहा साहिबा , प्रदत्त विषय पर आधारित सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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