आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय टी आर शुक्ल जी, ये तो हम सभी जानते है. ये कुछ समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों पर इन दिनों सुनाई दे रहा है. इसमें कथातत्व कहाँ है? बहरहाल इस प्रयास हेतु हार्दिक बधाई. सादर
आ सुकुल जी , आपकी रचना की मजबूरी कि इतने तथ्य देना मजबूरी मगर यही सोना कानों को काटता भी दिख रहा है। आपकी रचना का विषय ही ऐसा है कि न तो कम शब्दों में बात हो सकती और न ही कोई हल। मगर संवाद छोटे रखना आपके इख़्तियार में था , यह सुन कर बुरा न मानें इतना सा निवेदन मेरा।
आदरणीय टीआर सुकुल जी, इस प्रस्तुति के माध्यम से आप बहुत कुछ कहना चाहते दिख रहे हैं, जो इसके दायरे में समाने से मना कर रहे हैं. इसी कारण कथातत्त्व भी उभर नहीं सका है. वैसे आप जैसी कोशिशें कर रहे हैं, आश्चर्य नहीं कि अगली ही बार आपकी एक सशक्त लघुकथा प्रस्तुत हो.
सादर शुभकामनाएँ
आदरणीय डॉ टी एस शुक्ल जी, मैं इस प्रस्तुति को लघुकथा नहीं कह पा रहा हूँ, सादर.
लघुकथा- षडयंत्र
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बारहवे के दिन भाइयों में बहस होने लगी.
“ भैया ! आप से पूछा था. आप दोनों ने ‘हाँ’ कहा था इसलिए मम्मी की सारी रकमजेवरात बहन को दे दी थी .” मझला बोला तो छोटे ने एतराज किया, “ आप ने झूठ बोला था. रकम पर बहनबेटी का नहीं बहूबेटी का हक़ होता है, इसलिए सभी रकम सभी औरतों के बीच भी बराबर बंटनी चाहिए.”
“ पर छोटे ! वह तो हम बहन को दे चुके हैं .”
यह सुनते ही वह बिफर पड़ा, “ हम नहीं, आप. आप से किस ने कहा था निर्णय लेने के लिए ? आप जानते हैं कि पैतृक संपति में सभी भाइयों का बराबर हक होता है.”
“ आप सब से पूछ कर निर्णय लिया था. मगर जाने दे. आज के दिन झगड़ा नहीं करते. इसलिए आप बताइए क्या करना है ?”
“ बहन से सभी रकमजेवरात ले कर हम सब में बराबर बाँट दो.” बड़े भैया ने निर्णय सुनाया तो मंझला बोला, “ भैया ! आप सब से पूछ कर, पंचो के सामने बहन को रकमजेवरात दिए थे . उस से वापस कैसे मांग लूं ? ऐसा कीजिए, आप ही वापस मांग लीजिए.”
यह सुन कर दोनों भाई भड़क गए. झगड़ा इतना बड़ा की दोनों नाराज हो कर अपने-अपने शहर जाने के लिए बस स्टैंड पहुँच गए, “ भैया ! कैसी रही ?” मुस्कराते हुए छोटे बोला.
“ बहुत खूब रही छोटे. मान गए तुझे. यदि हम ठीक ढंग से बारहवां निपटा देते तो हमें मम्मी के इलाज और क्रियाकर्म के अपने-अपने हिस्से के दो-दो लाख रूपए देना पड़ते.”
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(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय राहिला जी शुक्रिया आप का, आप को मेरी लघुकथा अच्छी लगी.
बढ़ीया कथानक व उम्दा निर्वाहन आदरणीय ओमप्रगास भाई जी । सादर शुभकामनाएं ।
आदरणीय रवि प्रभाकर जी आप के लघुकथा पर उपस्थित हो कर समर्थन करने के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आप को मेरी लघुकथा पसंद आई . मेरी मेहनत सार्थक हो गई. आप का तहेदिल से शुक्रिया. लघुकथा पर उपस्थित हो कर अपनी अमूल्य व अतुल्य राय और समर्थन देने के लिए .
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