आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ.रवी सर आगे के प्रयासो मे सहजता का प्रयास करूँगी.सादर आभार
आदरनीय नयना आरती जी रिश्ते के षडयंत्र को व्यक्त करती लघुकथा के लिए बधाई आप को .
आ.ओमप्रकाश जी आभार आपका
बढिया रचना आदरणीया नयना जी . बधाई !
आ.सुधीर सर धन्यवाद
प्रेम के वशीभूत,पारिवारिक षडयंत्र की शिकार का बढ़िया चित्रण आदरणीय नयना जी ,बधाई।
आ.जैन सर आभार आपका
आ.जानकी जी धन्यवाद आपका
लघुकथा अच्छी हुई है आ० नयना जी और प्रदत्त विषय को परिभाषित भी करती है जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित हैI लेकिन इसकी पहली पंक्ति उलझी हुई होने के कारण बोझिल हो गयी हैI
//वृद्धावस्था में बडे कष्ट झेल कर मरी थी, इसलिये उनसे बिछड़ने का जो दर्द उठा, उसे माँ को उसके कष्टों से मिले छुटकारे के अहसास ने सहलाया था.//
लघुकथा में विवरण लिखते हुए उन्हें सादा एवं चुस्त रखने का प्रयास करना चाहिएI अब उपरोक्त पंक्ति को देखें, आपने संभवत: यह कहने का प्रयास किया है कि एक बूढी माँ का बहुत कष्ट भोगने के बाद देहांत हो जाता हैI उसकी बेटी दुखी तो है लेकिन यह बात उससे दुःख को कम करती है कि आखिर माँ को दुखों से छुटकारा मिलाI इस बात को आप सादगी से नहीं कह पाईंI माँ को क्या दुःख था? क्या लम्बी बीमारी से जूझ रही थी या फिर बहू-बेटे की तरफ से उसको कष्ट दिए जा रहे थे? इसका मामूली सा इशारा करना बनता थाI इस पंक्ति को इस तरह लिखा जा सकता था:
“बरसों से तरह तरह की बीमारियो से जूझ रही माँ का देहांत हो गयाI माँ से बिछड़ने का गम बेशक उसे अन्दर तक साल रहा थाI लेकिन कहीं न कहीं उसे इस बात का संतोष अवश्य था कि अंतत: माँ को कष्टों से छुटकारा मिल गयाI”
//किंतु उसकि की जिव्हा तो चिरपरिचित स्वाद के लिये व्याकुल थी.//
//किंतु उसकी जिव्हा तो चिरपरिचित स्वाद के लिये व्याकुल थी.//
लघुकथा का अंत अच्छा लगा, जिसके लिए एक्स्ट्रा बधाईI
हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी!आज भौतिकवाद रिश्तों पर हाबी होता जा रहा है!साम,दाम,दंड और भेद, सभी तरह के हथकंडों से मनुष्य धन संपति जुटाने में लगा है!बढिया रचना!
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