आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय महिमा जी लेखनी में दम है,अतः गुरु जनों का मार्गदर्शन मिला ।हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं ।
बहुत -बहुत धन्यवाद और आभार आपका आ.पवन जैन सर जी,
बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आपका, आदरणीय डॉ.विजय शंकर सर जी, आपकी पसंदगी और प्रेरणास्पद टिप्पणी के लिये.
बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आपका, आदरणीय राजेंद्र गौर सर जी, आपकी पसंदगी और प्रेरणास्पद टिप्पणी के लिये
प्रदत्त विषय को बढ़िया ढंग से परिभाषित करती प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया महिमा जी
बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आपका, आदरणीय प्रतिभा जी, आपकी पसंदगी और प्रेरणास्पद टिप्पणी के लिये
आदरणीया महिमा जी, आपकी किसी पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. इस प्रस्तुति एवं आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आपका आ.मिथिलेश वामनकर जी.
सूखा
जैक और जिल बाल्टी थाम कर आज फिर पहुँच गए पहाड़ी पर पानी लाने I पहाड़ी में पानी का एक बडा टेंकर पानी बाँट रहा था I पानी लेने वालों की लम्बी लाइन लगी थी I दोनों लाइन में सबसे पीछे खड़े हो गए I दोनों खुश थे कि कायदे से काम हो रहा है और आज पानी मिल ही जाएगा और इतने वर्षों से उन दोनों पर लगा दाग कि बिना पानी लिए लुढ़कते हुए नीचे आ जाते हैं ,आज मिट जाएगा I
दोनों लाइन में सबसे पीछे खड़े हो गए I एक व्यक्ति जो लाइन की व्यवस्था देख रहा था चिल्ला चिल्ला कर सबसे कह रहा था I
“आप लोगों को पानी देने के लिए ठाकुर साहेब ने शासन के पीछे पड़ पड़ कर इस टेंकर की व्यवस्था की हैI आप सब शांति से लाइन में खड़े रहें “I
थोड़ी देर बाद एलान हो गया कि टेंकर ख़त्म,अब दो दिन बाद फिर आयेगाI लोग मायूस हो गएI व्यवस्था वाला आदमी फिर आ गयाI
“हमें पता है सबको पानी नहीं मिल पाया, पर ठाकुर साहेब फिर शासन के पीछे पड़कर मंगवा लेंगे टेंकर i हर हाल में आप सब के साथ खड़े हैं वो”I
जैक और जिल भी मायूस लौटने लगे I व्यवस्था वाला पीछे आ गया I
“तुम्हे तो यहाँ कभी नहीं देखा ,कौन हो तुम ?”
“जैक और जिल “
ओहो वो कविता वाले I इससे पहले कभी पानी मिला जो अब मिलेगा ,चलो भाग लो “I
जैक और जिल घबरा कर दौड़े और फिर पहाड़ी पर से नीचे लुढ़कने लगे I पर पीछे लुढ़कती जिल ने देख लिया था कि लाइन में आगे खड़े हुए सारे आदमी जिन्हें पानी मिल गया था वो एक ट्रक में पानी लाद रहे थे I व्यवस्था वाला आदमी वहां भी लदवाने की व्यवस्था देख रहा था I आगे ड्राईवर की बगल में ठाकुर साहेब बैठे थे I
मौलिक वाप्रकषित
वाह वाह वाह, क्या बात है आ० प्रदीप कुमार पाण्डेय जीI बेहतरीन लघुकथा हुई, इसे इस आयोजन की सर्वश्रेष्ठ रचनायों में से एक कहना कोई अतिश्योक्ति न होगीI "जैक और जिल" हमेशा से जिस षडयंत्र का शिकार रहे हैं, उसको बेहद सुन्दर शब्दों में बाँधा हैI मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करेंI
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