आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत बहुत आभार आ समर कबीर साहब, कोशिश तो मैंने की थी वही लिखने की, हो सकता है कि सफल नहीं हुआ हूँ
सही और गलत का फर्क जानने वालों को खून के आंसूं निकलवाते है लोग इसलिए अच्छा है कि कुछ न जाना जाय , सच की राह कठिन होती है इसलिए न जानना ही बेहतर है ,अच्छा किया सब जला दिया , पढ़ -लिख कर भी जब जानवर जैसे ही रहना है तो अच्छा है कि किताबों को जला ही दिया जाए , चिंतन को आंदोलित करने वाली लाजवाब लघुकथा बनी है आपकी आदरणीय विनय जी , अभिनन्दन आपको .
बहुत बहुत आभार आ कान्ता रॉय जी, चिंतन को आंदोलित करती लगी रचना, शुक्रिया
आदरणीय विनय जी, बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. हार्दिक बधाई. सादर
बहुत बहुत आभार आ मिथिलेश वामनकर जी
बहुत बहुत आभार आ डॉ विजय शंकर जी
बहुत खूब विनय भाई। षड्यंत्रकारी कितने भ्रम में कि न रहेगा बांस , न बजेगी बांसुरी। सच है विद्या के आलोक को कौन मिटा सकता है , किताबें फूंक भी दी तो क्या। बहुत नपा तुला अंदाज़ आपका।
बहुत बहुत आभार आ प्रदीप नील जी
वाह आदरणीय विनय जी, आपकी लघुकथा सन्देश देने में सफल रही है, बहुत खूब, बधाई स्वीकार कीजिये.
पूर्वोपाय(एहतियात)--
"विभूति जी !" बॉस का उष्ण स्वर गूँजा।
"जी सर" उन्होंने विनम्र प्रत्युत्तर दिया। वे बॉस के अविलम्ब बुलावे पर उनके केबिन में पहुंचे थे और वह युवक ,पहले से ही वहां मौजूद था। उन्हें आया हुआ देख, उसने अचकचा कर फौरन अपना चेहरा दीवार की तरफ़ घुमा लिया।
"देखिए ! आप का स्वास्थ्य तो ठीक रहता नहीं है, तो अब आप ...।" बॉस की बात पूरी होती इससे पूर्व ही वे बोल पड़े "पर सर ! वह नया प्रोजेक्ट...?"
"उसकी चिंता अब आप न कीजिये..। ये हमारे ,नए चीफ़- इंजीनियर सब सम्भाल लेंगे। ...है ,ना.. विविध! ?"
बॉस ने प्रश्न उस युवक की तरफ उछाला तो युवक नें फौरन मौका लपकते हुए, सहमति में सर हिलाया फिर विभूति बाबू की ओर कनखियों से देख कर मुस्कुरा दिया। माज़रा समझ ,उनके चेहरे का सारा खून मानों निचुड़ कर आँखों में भर आया, पर बेबसी में वे कुछ बोल न सके। बोझिल कदमो से वे अपने केबिन की ओर चल दिए।
'मुझे तो बड़े भाई जैसा सम्मान देता आया है और मैंने भी तो इसे अपने छोटे भाई का दर्जा देते हुए काम सिखाया। कैसे मेरे आगे-पीछे ही घूमता रहता था? ,बिल्कुल बच्चे की तरह..।' सोचते हुए अनायास वे मुस्कुरा दिए फ़िर सहसा गंभीर हो उठे ।
'कहीं..?' मारे उलझन के, उनकी भंवे सिकुड़ गयीं थीं पर उनका मन अभी भी, मस्तिष्क की अवहेलना कर रहा था ।
"नही..!! ऐसा नही हो सकता।" बुदबुदाते हुए उन्होंने मन का समर्थन किया । तभी पीछे से ऑफिस के चपरासी ने उन्हें पुकारा "सर ..सर...! बॉस ने आपको फौरन वापस बुलाया है।"
एकबारगी तो उनके मन में आया कि मना कर दे पर कुछ सोचकर ,अनमने, वे वापस चल दिए। झिझकते हुए उन्होंने केबिन में कदम रखा। बॉस युवक को एक विदेशी क्लाइंट की मशीन की समस्या हल न कर पाने के कारण बुरी तरह लताड़ रहे थे। ज्यूँ ही उस युवक नें उन्हें देखा, क्रोध से बिलबिलाते हुए वह चीख उठा।
"इस मशीन के विषय में मुझे अनजान रख आपनें मेरे ख़िलाफ़ साजिश की है..! मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी। "
उन्होंने फौरन आगे बढ़ कर बॉस से फ़ोन ले लिया और क्लाईंट को मशीन के विषय में समझाने लगे। थोड़ी देर में ही माहौल सहज हो चला।
फ़ोन काट कर बॉस को वापस देने के लिए उन्होंने ज्यूँ ही हाथ आगे बढ़ाया तो बॉस ने मुस्कुरा कर उनका कन्धा थपथपा दिया।
अपनी दाई भंव उचका कर ,कनखियों से युवक की ओर देख ,अब वे मुस्कुरा दिए ।
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