परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 152 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब 'मजरूह' सुल्तानपुरी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
'लोग साथ आते गये और कारवाँ बनता गया'
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
बह्र-ए-रमल मुसम्मन महज़ूफ़
रदीफ़ --बनता गया
क़ाफ़िया:-(आँ का)
गुलसिताँ, आशियाँ,दास्ताँ, राज़ दाँ, दरमियाँ आदि
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 24 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय अमित जी ग़ज़ल पर तवज्जो के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया अदना सी कोशिश पर संशय का कोई कारण नहीं है . वैसे जनाब उस्ताद समर कबीर साहब इस पर ख़ास रोशनी डाल सकते हैं
'अदना सी कोशिश' बच्चों के हिसाब से छोटी कोशिश, मुझे तो ठीक लगा ।
आदरणीय अनिल जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ। बधाई स्वीकार करूँ। मतला कुछ कम स्पष्ट लगा।
आदरणीय संजय शुक्ला जी गजल तक आने के लिए धन्यवाद मतले को इस अंदाज से देखें कि आजादी की लड़ाई में सब ने योगदान किया और तब यह फतेह हासिल कर सके लेकिन आज विभिन्न क़ौमों जातियों के बीच की दूरी पर शायर हतप्रभ है
आदरणीय अनिल जी उम्दा ग़ज़ल आपने मुशायरे में पेश की गिरह के साथ दूसरे अशआार भी अच्छे हुए है । के लिय दिली मुबारक बाद पेश है
आदरणीय रवि शुक्ला जी अशआर पसंद करने के लिए मैं तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूं
आदरणीय अनिल जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है . कुछेक शेर जैसे बच्चे और गुलिस्ताँ वाला शेर और गिरह ख़ास तौर पर पसंद आया .
आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी गजल पर आपकी प्रशंसा से दिल बाग बाग हो गया बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
जनाब अनिल कुमार सिंह जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।
बेहद शुक्रिया जनाब , आप से मिली दाद और हौसला अफ़जाई मेरे लिए बाइस ए और मसर्रत है .
इस अच्छी ग़ज़ल के साथ मुशायरे की शुरुआत करने के लिए आपको बहुत बधाई आदरणीय अनिल कुमार सिंह जी. गिरह का शेर बहुत अच्छा लगा. तीसरे शेर का ऊला मिसरा है
रंग दी जबसे शहीदों ने ये धरती ख़ून से
मेरी जानकारी के अनुसार रंग को अगर आप किसी खास रंग जैसे काला रंग के लिए लिख रहे हों तो "रंग" लिखा जाएगा और उसका वज़्न (21 ) होगा, लेकिन आपके मिसरे में रंग से अर्थ रँगने की किर्या से है इसलिए यहाँ पर इसे "रँग" लिखा जाएगा और इसका वज़्न (2) होगा. अगर मैं ग़लत हूँ तो कृपया मुझे करेक्ट कीजिएगा. सादर।
दोनों ही सूरतों में 'रंग' 21 ही लिया जाएगा ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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