For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-154

विषय : "अपनी माटी अपना देश"

आयोजन अवधि- 12 अगस्त 2023, दिन शनिवार से 13 अगस्त 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 12 अगस्त 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

Views: 531

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

गीत
*****
अपनी माटी, अपना देश
हमको यह उत्तम परिवेश।।
*
कलकल करता नद का नीर
कलरव करते पक्षी तीर।।
ऋतुओं की जिसमें भरमार
ईश्वर धरते जहाँ शरीर।।
पुरवाई नित भरे उमंग
कण-कण देता सुख सन्देश।।
*
निर्धन हों या धन हो पास
त्यौहारों का नित उल्लास
युगों - युगों से अपनी रीत
भौतिकता की रखी न प्यास।।
भूल न जायें दें नित सीख
अपने ऋषि अपने दरवेश।।
*
तन से चाहे मीलों दूर
अपनेपन से मन भरपूर
मन उतरा जो देता पीड़
मन भाये को कहते हूर
नगर बसे या छोटे गाँव
अपनी भाषा अपना वेश।।
*
हैं सीमा पर चौकस वीर
क्यों होना फिर कहो अधीर।।
सकल धरा जब कहते गेह
फिर पाँवों में क्या जन्जीर।।
भरती बचपन की किलकार
बूढ़े मन में नव आवेश।।
*
बोल रहा सन्तों का मौन
हम सा जग में समझे कौन।।
क्या आगत क्या भला अतीत
नूतन रहता अपना भौन।।
एक हिमालय रहा प्रमाण
युगों - युगों से यह अखिलेश।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी, आपकी रचना का कथ्य, इसकी बुनावट, इसका विधान मुग्ध कर रहा है। 

चौपई छंद के विधान पर आबद्ध यह गीत-रचना अपनी माटी अपना देश के शीर्षक के साथ न्याय कर रही है। य़ह अवश्य है कि मुखड़े की दूसरी पंक्ति ’हमको यह उत्तम परिवेश’ को तनिक और तार्किक किया जा सकता था। य़था, भारतवासी हित परिवेश  या कितना सुंदर यह परिवेश आदि। 

निर्धन हों या धन हो पास .........   निर्धन हो या धन के दास 
त्यौहारों का नित उल्लास ........... त्यौहारों ंमें भर उल्लास 

युगों - युगों से अपनी रीत ........   लोक-मनस की अपनी रीत 
भौतिकता की रखी न प्यास 
भूल न जायें दें नित सीख  .......... मत भूलें हम देवें सीख 
अपने ऋषि अपने दरवेश।।

तन से चाहे मीलों दूर
अपनेपन से मन भरपूर
मन उतरा जो देता पीड़
मन भाये को कहते हूर
नगर बसे या छोटे गाँव
अपनी भाषा अपना वेश ........  इस बंद में आधार-पंक्ति के बीच संतुलन नहीं बन रहा है। और, शुद्ध शब्द पीर है। 

हैं सीमा पर चौकस वीर
क्यों होना फिर कहो अधीर .....  फिर क्या होना कहो अधीर ?  
सकल धरा जब कहते गेह
फिर पाँवों में क्या जन्जीर ......... जंजीर न कि जन्जीर 
भरती बचपन की किलकार ...... भरता बचपन खुल किलकार 
बूढ़े मन में नव आवेश ........       वाह-वाह !  

बोल रहा सन्तों का मौन
हम सा जग में समझे कौन।।
क्या आगत क्या भला अतीत
नूतन रहता अपना भौन।।
एक हिमालय रहा प्रमाण
युगों - युगों से यह अखिलेश।। ....... वाह ! वाह !! 

विश्वास है, उपर्युक्त सुझावों के साथ-साथ आप भी कुछ बेहतर सोच सकते हैं। 

चौपई छंद में निबद्ध इस सुन्दर गीत-रचना के हार्दिक बधाई। 

शुभ-शुभ


आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।
गीत पर उपस्थिति, स्नेह, सुझाव व मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।
आप द्वारा सुझाये सभी सुधार सिरोधार्य हैं। निश्चित ही इससे गीत का प्रभाव बहुगुणित हो गया है।
मूलतः मैं चौपई छंद से परिचित नहीं था। पटल पर रचना पोस्ट करने तक। जब भाई अजय जी की रचना और उस पर आपकी टिप्पणी देखी तब इस छंद के विषय में गूगल से जानकारी ली। फिर भी अपने रचित गीत की ओर ध्यान ही नहीं गया। आपकी टिप्पणी के बाद पता चला कि अनजाने ही यह गीत चौपई छंद में रच गया। अब इस पर अवश्य अभ्यास करूँगा।

//नगर बसे या छोटे गाँव
अपनी भाषा अपना वेश ........  इस बंद में आधार-पंक्ति के बीच संतुलन नहीं बन रहा है। //
इस में कुछ बदलाव किया है। इस बारे मार्गदर्शन अवश्य कीजिएगा। सादर
**
घर से रहकर मीलों दूर
अपनेपन से मन भरपूर
सैनिक बन जो हरते पीर
कर दुश्मन के सपने चूर
नगर बसे या छोटे गाँव
हरपल हैं  सेवा में पेश।।

अति सुंदर 

जय-जय

बहुत ही सुंदर गीत लक्ष्मण भाई। चौपई छंद पर आधारित यह रचना बहुआयामी, बहुरंगी और अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ी है। बहुत सुंदर

उल्लाला छंद ःअपनी माटी अपना देश

जन- जन की माँ भारती ,चलो उतारें .....आरती ।
अपनी माँ ..उदार प्रकृति, भारत भाग्य सँवारती ।।

जिसने शरण ली यहाँ है, गोद मिली सब भारती ।
हूण, मुगल.. या पारसी, करें हरिद्वार ...आरती ।।

बसे कुछ हैं पर्वतों, प्रृकृति जिन्हें निहारती ।
सारे पुत्र सरस्वती, माँ उनको.. है..पालती ।।

चाहे भिन्न हो आस्था, .कि हम एक.परिवार है ।
सोच सभी का एक है, भाग्य अलम्बरदार है ।।

अपनी थाती देश है, जनगण मे... विश्वास है ।
अपनी माटी एक है, भारत, बसती आस है ।।

भगत सिंह सुभाष सखा, स्वाधीनता प्रतीक हैं ।
शान्ति हेतु सुन भारती, विचार गाँधी ठीक हैं ।।

बोलें ....वन्देमातरम, सफल हो चन्द्र यान भी ।
जनगण का उद्घोष हो, रह जायेगी आन भी ।।

मौलिक व अप्रकाशित

जय-जय 

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी उपस्थिति का आभार

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आ. भाई सुशील जी, सादर आभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post दिल चुरा लिया
"   आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत ग़ज़ल प्रयास की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब।"
Wednesday
Sushil Sarna posted blog posts
Tuesday
Ashok Kumar Raktale posted a blog post

दिल चुरा लिया

२२१ २१२१   १२२१  २१२  उसने  सफ़र में उम्र  के  गहना  ही  पा लियाजिसने तपा के जिस्म  को  सोना बना…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पतझड़ छोड़ वसन्त में,  उग जाते हैं शूलजीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।*सावन सूखा  बीतता, कभी …See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीय उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीया बबिता जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service