आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ टी आर शुकुल जी! हर परिस्थिति को भुनाने में माहिर ढावेवाले की मनोदशा का घिनौना चित्रण तथा भिखारियों का भीख की कमाई से जूठन खरीदना, बहुत ही मार्मिक लघुकथा!
बहुत धन्यवाद , अादरणीय तेजवीर सिंह जी।
बहुत धन्यवाद , अादरणीया राजेश जी।
लंघन करके कष्ट दाई जीवन से मुक्ति ,मर्म गहन है अंत में लेखक स्वयं उपस्थित ना होकर भिकारी से ही कहलवा देता तो कथ्य का प्रभाव बढ़ जाता ...हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय
बहुत धन्यवाद , अादरणीया प्रतिभा जी। सुझाव के लिए अाभार , संकलन के समय संशोधन करने का प्रयास करूंगा। सादर।
बहुत धन्यवाद , अादरणीया नीता जी।
लघुकथा सन्दर्भ में यहाँ एक विशिष्ट प्रकार की विसंगति को कथ्य बनाया है आपने और पंच भी खूब असरकारी है कि --‘‘तुझसे बड़ा डाक्टर तो वही है जो जानता है कि लंघन से ज्वर के कष्टों से ही नहीं, कष्टदायी इस जीवन से भी छुटकारा मिल जाता है।‘‘ ---- बहुत ही उम्दा ! आपकी इस संस्मरणात्मक लघुकथा के लिए बधाई आपको आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी .
बहुत धन्यवाद , अादरणीया कान्ता जी। यह कथ्य एवं अाक्रोश विषय को प्रकट करने के त्रिअायामी मॉडल को प्रस्तुत करने का प्रयास / प्रयोग शिल्पज्ञों की नजर मे कितना सार्थक बना है ,अभी देखना बाकी है। अापकी प्रशंसा के लिए अाभार।
बहुत धन्यवाद , अादरणीय सतविन्द्र जी।
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