आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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स्वार्थ की अति हो जाती है जब माँ बाप का रिश्ता भी भुला दिया जाता है ..मार्मिक कथा ..हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील सरना जी ...सादर
आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति की संवेदनशीलता को मान देने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटि का भविष्य में ध्यान रखने की पूरी चेष्टा करूंगा। हार्दिक आभार।
सुंदर रचना सतविंदर जी. बधाई .
भाई सतविन्द्र कुमार जी, आपने जिस ढंग से पौराणिक पात्रों को लेकर लघुकथा कही है, उसे देखकर ह्रदय गदगद हो गयाI सच कहूँ तो मुझे इस प्रकार की रचनाएँ बेहद पसंद हैंI खुद मैंने भी इस प्रकार की कई लघुकथाएँ लिखी हैंIअत: मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारेंI दरअसल, पौराणिक पात्र लेकर यदि कोई बात कही जाए तो किसी प्रसिद्ध पौराणिक घटना को ही विषय/आधार बनाया जाना चाहिएI
//"आप अपने भाइयों की शिक्षा-दीक्षा के लिए धनार्जन करने के लिए संकल्पित होकर घर से गए थे,//
यह घटना नितांत काल्पनिक है, जो बाआसानी गले से नहीं उतरतीI आपने इस लघुकथा के माध्यम से लक्ष्मण जी के प्रायश्चित की बात कहने का प्रयास किया है, लेकिन उसमे पूर्ण रूप से सफल नहीं रहेI दूसरे, आप घटना/प्रसंग चुनने में चूक कर गएI यदि इस कथानक पर मुझे लघुकथा कहनी होती तो मैं राम बनवास की समाप्ति के बाद लक्ष्मण और उर्मिला के मध्य मुलाकात का एक काल्पनिक किस्सा बुनताI वहीँ लक्ष्मण उर्मिला से क्षमा मांगते और कहते कि उनकी (उर्मिला की) उपेक्षा करके वह स्वयं को अपराधबोध से दबा हुआ महसूस कर रहे हैंI`इसी पश्चाताप के निवारण हेतु वे प्रायश्चित का कोई मार्ग ढूंढतेI
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