आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी! सुंदर प्रस्तुति!
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी!
आदरणीय योगराज सर, विश्वास कीजिए न तो मैंने यह फ़िल्म देखी है और न ही इसके पहले इसका नाम ही सुना है। यह बड़ा ही अजीब इत्तेफ़ाक़ है। यदि इसकी कहानी 'आई कन्फेस' नामक फ़िल्म से मिलती है तो मुझे इसका वाक़ई बहुत खेद है। सादर!
हार्दिक आभार आदरणीया नीता जी, सादर!
अच्छी लघु कथा है आद० महेंद्र जी हार्दिक बधाई
बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश मैम, सादर!
आदरणीया सविता जी, आपको लघुकथा पसंद आयी इसके लिए हृदय तल से आभार! सादर धन्यवाद!
बहुत शुक्रिया आदरणीय सतविन्द्र जी!
जननी का प्रायश्चित
“अम्मी ,भूख लगी है।“
“चुप बैठ ! इस पानी में तेरी भूख का क्या करूँ ं?” माँ की नम आँखे और रूक्ष आवाज सुन वह नन्हा - सा लड़का सहम कर पेटी के दूसरे कोने पर दुबक गया।
बीती रात से ही बहुत तेज बारिश हो रही थी। गली ,मोहल्ला पानी के सैलाब में बह रहा था। किराए की यह टपरी भी जलमग्न थी। बूढ़ा सिकुड़ कर दूसरे कोने पर दारू की तलब में मचियाये जा रहा था। टप-टप की आवाज़ इधर रमिया बाई के सीने को भेद रही थी।
कल मूंगफली का ठेला लगाया था बुड्ढे के लिये कि बैठे –बैठे यह भी दो पैसे की आमदनी करके आये । बारिश की बाढ़ बचा खुचा भी लील गया।
चार सौ रुपये में मालकिन से खरीदी पलंग-पेटी आज सबको बहने से बचा गयी। ये ना होती तो सब इस बारिश में कहाँ टंगते ! ईश्वर साहब को खूब तरक्की दे। कुछ दिन पहले मालकिन की भाभी आई थी। बाँझ है उसे बच्चा गोद लेना है।
अनाथ आश्रमों में अपना पता देकर आई है। दो लाख रुपये खर्च करने की बात कह रही थी।बात करते हुए लडके को घुरना उसका अच्छा नहीं लगा था।
“भूख लगी है “ लड़का फिर से ठुनक उठा।उसका दिल जल उठा।
बूढ़ा कमा कर खिलाने लायक तो नहीं लेकिन भूख को जन्म देने के लायक मर्द ेंअभी भी उसमें बाकी है ।
“ क्या करूँ,मालकिन के यहाँ जा पाती तो सबके खाने का इंतजाम हो जाता।" बाहर अंधेरा छा गया ,रात की बारिश सुबह ,दोपहर, सबको बहा शाम तक ले जा पहुंची, कोई रास्ता भी नहीं सूझ रहा है इस अँधेरे में। आज बार -बार उनके कहे दो लाख रूपये याद आ रहे है लड़के को उनका देखना उसका भाग जागने जैसा लग रहा था।
क्या इस एक भूख को सदा के लिए ठिकाने लगा दूँ ? वह विह्वलता से लड़के को खींच कलेजे से लगा पुचकारने लगी ,तभी बाँयाहाथ अनायास ही पेट पर जा पहूँचा ।
पेट के कोने में, गर्भाशय में एक और भूख जीवित हो रहा था।
मौलिक और अप्रकाशित
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