आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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इस मर्मस्पर्शी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अर्चना जी, सादर!
प्रायश्चित
हीरानंद की बेटी रमला की शादी थी | गाँव के सभी लोग शादी में आमंत्रित थे |उत्सुकता से सब लोग बाराती का इंतज़ार कर रहे थे |थोड़ी देर में बारात आ पहुँची | दुल्हा घोड़ी पर बैठा था और बाराती बाजे के साथ साथ थिरक रहे थे |द्वार पर स्वागत के लिए लड़की वाले आरती की थाली लेकर खड़े थे |दूल्हा जब द्वार पर पहुँचा तो गाँव के लोग दुल्हा के साथ खड़े एक चेहरा को देख कर भौंचक्का रह गए |वह व्यक्ति था शिवानन्द |केवल यही गाँव नहीं,आसपास के गाँव के लोग भी जानते थे कि हीरानंद और शिवानन्द के परिवारों में कट्टर दुश्मनी का रिश्ता है | कभी ये दोनों जिगरी दोस्त हुआ करते थे |अपनी दोस्ती को सदा कायम रखने के लिए दोनों ने मिलकर रमला की शादी शिवानन्द का बड़ा बेटा सुरेश से कर दिया था | रमला उस समय पाँच साल की थी और सुरेश सात साल का | विवाह के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं था | बड़े हो कर सुरेश जब पढने शहर गया तो उसने कालेज में ही अपनी एक सहपाठिनी से प्रेम विवाह कर लिया और वहीँ शहर में ही रह गया | उस समय से दोनों परिवारों में दुश्मनी हो गई थी |
आज शिवानन्द को बाराती के साथ देख कर गाँव वाले उसे घेर लिया और पूछा, “”आप यहाँ क्यों आये हैं?” गांववालों की आक्रोश देखकर हीरानंद आगे आया और शिवानन्द को गले लगा लिया फिर गाँव वालों को सम्ब्प्धित करके कहा, “भाइयों शिवानन्द आज मेरे साथ यहाँ अपने कुकर्म का प्रायश्चित करने आये है | हमने बिना समझे बाल विवाह जैसे कुरीति को प्रश्रय दिया था और दोनों बच्चो की शादी कर दी थी | वो हम दोनों की गलती थी | शिवानन्द भी कभी अपने आप को क्षमा नहीं कर पाया और मुझसे सलाह करके ही उसने यह शादी की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठाया | यह हम दोनों के कुकर्म का प्रायश्चित हैं|”
मौलिक एवं अप्रक्षित
यह हम दोनों के कुकर्म का प्रायश्चित हैं|” मेरे ख़याल से यहाँ कुकर्म ना कहकर गलतियों ज्यादा सही रहता |
अच्छी कहानी हुई आद० कालीपद प्रसाद जी हार्दिक बधाई
आदरणीय राजेश कुमारी जी , गलती -- अनजाने में होती है ,जानबूझ कर करे तो कुकर्म ही कहलायगा ना आदरणीय | प्रोत्साहन के लिए आभार आपका |
आ० कालीप्रसाद मण्डल जी देखकर बताएं, कुछ अंतर लग रहा है कि नहीं?
हीरानंद की बेटी रमला की शादी थी| गाँव के सभी लोग शादी में आमंत्रित थे| उत्सुकता से सब लोग बारात (बाराती) का इंतज़ार कर रहे थे | थोड़ी देर में बारात आ पहुँची | दूल्हा (दुल्हा) घोड़ी पर बैठा था और बाराती बाजे के साथ साथ थिरक रहे थे| द्वार पर स्वागत के लिए लड़की वाले आरती की थाली लेकर खड़े थे| दूल्हा जब द्वार पर पहुँचा तो गाँव के लोग दूल्हे (दुल्हा) के साथ खड़े एक चेहरे (चेहरा) को देख कर भौचक्के (भौंचक्का) रह गए| वह व्यक्ति था शिवानन्द| केवल यही गाँव नहीं, आसपास के गाँव के लोग भी जानते थे कि हीरानंद और शिवानन्द के परिवारों में कट्टर दुश्मनी का रिश्ता है| कभी ये दोनों जिगरी दोस्त हुआ करते थे| अपनी दोस्ती को सदा कायम रखने के लिए दोनों ने मिलकर रमला की शादी शिवानन्द के (का) बड़े बेटे (बेटा) सुरेश से कर दी थी (दिया था)| रमला उस समय पाँच साल की थी और सुरेश सात साल का| विवाह के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं था| बड़े होकर सुरेश जब पढने शहर गया तो उसने कालेज में ही अपनी एक सहपाठिनी से प्रेम विवाह कर लिया और वहीँ शहर में ही रह गया| उस समय से दोनों परिवारों में दुश्मनी हो गई थी|
आज शिवानन्द को बरात (बाराती) के साथ देख कर गाँव वालों ने (वाले) उसे घेर लिया और पूछा:
”आप यहाँ क्यों आये हैं?” गांव वालों का (की) आक्रोश देखकर हीरानंद आगे आया और शिवानन्द को गले लगा लिया फिर गाँव वालों को संबोधित करते हुए (सम्ब्प्धित करके) कहा:
“भाइयों! शिवानन्द आज मेरे साथ यहाँ अपने कुकर्म का प्रायश्चित करने आये है| हमने बिना समझे बाल विवाह जैसे कुरीति को प्रश्रय दिया था और दोनों बच्चो की शादी कर दी थी| वे (वो) हम दोनों की गलती थी| शिवानन्द भी कभी अपने आप को क्षमा नहीं कर पाया और मुझसे सलाह करके ही उसने इस (यह) शादी की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठाई (उठाया)| यह हम दोनों के कुकर्म का प्रायश्चित हैं|”
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ! बहुत अच्छा लग रहा है | संशोधन के लिये हार्दिक आभार |
बाल विवाह जैसे कुप्रथा को आपने कथा का विषय बनाकर और प्रदत्त विषय से जोड़कर अच्छा निर्वहन किया है .. आपको हार्दिक बधाई आदरणीय कालीपद प्रसाद जी
लघुकथा का विषय पसन्द करने के लिए आपको धन्यवाद आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी
आ शेख शहजाद उस्मानी जी आपका हार्दिक आभार
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