आदरणीय साथिओ,
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बहुत बढ़िया रचना विषय पर, नाम के सहारे ही जीवन बीत जाता है कभी कभी| बहुत बहुत बधाई आपको
अगर किसी अन्य गरीब परिवार की महिला का पति मर जाए तो उसके लिए भी जीवन यापन शायद कुछ आसान होगा लेकिन गरीब पंडित की पत्नी के लिए सामाजिक स्तर पर विधवा के रूप में जिंदगी बिताना बहुत मुश्किल है। लघुकथा में संवेदनाओं को बहुत शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है आपने आदरणीया शशि बंसल जी। मेरी तरफ से दिल से बधाई स्वीकार करें।
//तुम नहीं समझोगी जीजी , उनका होना ही मेरा सबसे बड़ा सहारा था ।// यहाँ तक ये कथन एक आम पति परायण विधवा स्त्री का दर्द लग रहा है ..पर इसके बाद जो आपने कथ्य उभारा है ...वाह ........हार्दिक बधाई आपको शशिजी आपको
आ० शशि जी कथा अच्छी बन पड़ी है और शीर्षक के साथ भी न्याय करती है . सादर .
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