आदरणीय साथिओ,
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बहुत अच्छी लघुकथा हुई है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी, एकदम विषयानुकूलI हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
आदरणीय ओमप्रकाश जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है. पंचलाइन //पत्र का सार अब भी उस के मन में गूंज रहा था, “ ठाकुर साहब ! आप से एक विनती है. कभी रितु को पता मत होने दीजिएगा कि वह एक अय्याश माँ की नाजायज औलाद थी. जिसे आप ने धर्मपिता बन कर पाला था.” // ने तो कथा का रुख ही मोड़ दिया. झटका भी लगा और ढहते किले का दर्द भी महसूस हुआ. इस सफल लघुकथा पर बहुत बहुत बधाई. सादर
आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. हार्दिक आभार. सादर
पिता के प्रति पाले हुए भ्रम के किले का ढहना , पर दोनों ही तरफ ये ग़लतफ़हमी कष्ट लेकर आई ..प्रदत्त विषय पर बढ़िया कथा ...हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय ओमप्रकाश जी
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आप का शुक्रिया. आप ने लघुकथा के मूलबिंदु को समझ कर अपनी प्रतिक्रिया दी. आप का बहुतबहुत आभार आदरणीय .
अंत बड़ा बढ़िया है, एक रोचक रचना विषय पर| बहुत बहुत बधाई आपको
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