आदरणीय साथिओ,
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मैंने अपने बच्चों में तो कभी भी कोई अंतर नहीं रखा।बेटियां का सम्मान करना तो मैंने सदैव ही सिखाया। फिर बच्चों में मूल्यों और संस्कारों के किले क्यों ढह रहे हैं ?क्या खोट रह गयी मेरी परवरिश में ?"
बहुत सुंदर सन्देश देती उम्दा लघुकथा कही है आप ने. आदरणीय अर्चना त्रिपाठी जी.बधाई आप को .
//क्या खोट रह गयी मेरी परवरिश में ?"// ऐसे प्रश्नों का जवाब मिल नहीं पाता अभिभावकों को ..और वो कुंठित होने लगते हैं .. आज के परिवेश का कटु सत्य उकेरती कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया अर्चना जी
//" परसो अर्धरात्री को सुहानी दीदी ,मुझसे अपने घर में रखने और बचा लेने की गुहार कर रही थीं क्योकि छोटे भैया ने उनके साथ जमकर मारपीट की थी वहीँ भाभी ने उन्हें घर से बाहर कर, भाग जाने की सलाह दी थी।...... आप बताइये ,कैसे रख लेता एक लड़की को अपने घर में मैं ? जब ये अपनी ही बड़ी बहन से ऐसा दुर्व्यवहार कर सकते हैं, तो मुझपर जाने क्या इल्जाम लगाते ?
आपके घर घटी विपरीत परिस्थिति और आपका लिहाज ना होता तो दोनों को जेल में चक्की पिसवा देता।लेकिन आप तो एकदम अन्जान बन रहे हैं जबकि भाभी ने आपको मोबाइल पर सुचना तो दी थी।"//
इतना लम्बा (113 शब्द) संवाद आ० अर्चना त्रिपाठी जी? रचना पैदल हो जाती है इतने लम्बे संवादों सेI
आदरणीया अर्चना जी, आपने लघुकथा हेतु अच्छा कथानक लिया है इस हेतु हार्दिक बधाई. किन्तु उसे शाब्दिक करने के क्रम में शब्दों और पात्रों की अधिकता ने उसे बोझिल कर दिया है. दो-तीन बार पढने के बाद स्पष्ट होता है कि कथ्य क्या है. कथा ढहते किले का प्रतीक रामचरण पर आधारित है. रामचरण अपने पिता और भाई की मृत्यु से दुखी है और अपने बच्चों के आपसी मनमुटाव ने उसे तोड़ दिया है और वह अपनी परवरिश की कमियां ढूढ़ने लगता है. यही रामचरण नामक ढहते किले का दर्द है. इसे यूं भी कहा जाता तो सन्देश संप्रेषित हो जाता-
अपने पिता और छोटे भाई का अंतिम संस्कार कर गाँव से वापिस हुए रामचरण को पीड़ा और इस उम्र में लम्बे सफ़र ने बदहाल कर दिया था. रिक्शे से उतरे ही थे कि पड़ोसी निलय आ गया.
"प्रणाम चाचाजी"
"खुश रहो बेटा."
"चाचा जी , आपके घर जो हो रहा हैं वह ठीक नही हैं, मैं तो पुलिस बुलाने वाला था।"
"पुलिस ....क्यों ?"
"परसों आधी रात को सुहानी दीदी बचा लेने की गुहार कर रही थी और मेरे घर में आसरा मांग रही थी. बता रही थी कि भैया ने मारपीट की तो भाभी ने भाग जाने की सलाह देकर घर से भेज दिया."
"लेकिन ..."
"लेकिन क्या चाचाजी, आप ही बताइये कैसे रखता जवान लड़की को अपने घर में? और फिर जो अपनी सगी बहन के साथ ऐसा कर सकता है वो मेरे साथ ..."
"लेकिन मुझे तो बहू ने फोन पर बताया कि सुहानी भाग गई है. इतनी दूर से भी मैं क्या कर लेता? इसी कारण तो जल्दी लौटा हूँ नहीं तो तेरहवीं के बाद ही वापिस आता."
"आपका लिहाज ना होता तो दोनों को जेल में चक्की पिसवा देता।"
रामचरण जी अवसाद में घिरते बुदबुदा उठे " मैंने अपने बच्चों में कभी कोई अंतर नहीं रखा।सदैव आपस में सम्मान करना ही सिखाया। फिर बच्चों में मूल्यों और संस्कारों के किले क्यों ढह रहे हैं ?क्या खोट रह गयी मेरी परवरिश में ?"
आदरणीया अर्चना जी, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका. सादर
लाजवाब मार्गदर्शन भाई मिथिलेश जी, दिल खुश कीता मुंडेआ......
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