आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय तस्दीक जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. वाकई जब धारा के विपरीत पूरे मनोयोग से कदम बढ़ते हैं तो सफलता अवश्य मिलती है. इस सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. सादर
समय बदल रहा है, बढ़िया रचना है प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको
सुनहरी भोर - लघुकथा –
"बड़े भैया प्रणाम, यह क्या हो रहा है आपके घर में"।
"अरे कुसमा बहिन, तुम कब आंई"।
"वह सब छोड़िये, आप शेर की तरह दहाड़ने वाले इंसान, गीदड़ कैसे बन गये"।
"अरे ऐसा कुछ नहीं है। आजकल के लड़के चार किताब क्या पढ़ लेते है, माँ बाप की बात सुनी अनसुनी कर देते हैं"।
"तो लगाइये चार जूते और निकाल बाहर कीजिये"।
"अरे, तुम यह कैसी भाषा बोलने लगी हो, यह सब ठीक नहीं लगता तुम्हारे मुंह से"।
"हमको मुद्दे से मत भटकाइये, हमारी बात का जवाब दीजिये"।
"कुसमा, तुम जानती हो ,इकलौता लड़का है, पढ़ा लिखा इंजीनियर है,खाता कमाता है।जोर जबरदस्ती से नहीं मानेगा"।
"तो क्या करेगा"।
"तुम्हें याद नहीं, विनोद बाबू का लड़का ज़रा सी डाँट डपटपर रेल गाड़ी से कट गया था"।
"भैया, ऐसी औलाद किस काम की, जिसकी वज़ह से माँ बाप को बार बार ज़लील होना पड़े"।
"कुसमा, तुम भी, तिल का ताड़ बना देती हो"।
"वाह भैया, यह खूब कही, पहले तो वह अपनी मर्ज़ी से लव मैरिज कर लिया।डोनेशन देकर इंजीनियरिंग करायी | लाखों के दहेज की उम्मीद थी, वह सब तो गया, भाड़ चूल्हे में ।और अब यह एक नया नाटक"।
"अब जाने भी दो कुसमा, तुम क्यों दिल छोटा करती हो"।
"कैसे जाने दें, हमारे घर में उलटी गंगा बहे और हम चुप चाप देखते रहें, हमने तो ऐसा न कभी देखा और न कभी सुना"।
"अब बेटे ने बहू से वादा कर लिया है तो मानना ही पड़ेगा "।
"पर इतना बड़ा फ़ैसला,अकेले, अपनी मर्ज़ी से, इसके पीछे कोई वज़ह तो बताई होगी"।
"हाँ, बच्चू कह रहा था कि बहू के पिता को लक़वा मार गया है। उसका छोटा भाई अभी पढ़ रहा है।इसलिये बहू की पगार उसके मायके भेजी जाया करेगी"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी।
आदरणीय तेजवीर सिंहजी आप की लघुकथा बहुत ही बढ़िया हुई है. धारा के विपरीत बहने वाली यह परंपरा नई है. बधाई आप को इस जानदार लघुकथा के लिए.
हार्दिक आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी।
हार्दिक आभार आदरणीय सुनील जी।लघुकथा का इतना सुंदर विश्लेषण करने के लिये पुनः आभार।
हार्दिक आभार आदरणीय आशुतोष जी।
ये एक सार्थक सन्देश देने में कामयाब लघु कथा है बहुत का मायके में पग़ार भेजना वाकई धारा के विपरीत है ये एक बहुत सराहनीय फेंसला है की पत्नी के मायके की विषम परिस्थितियों में आर्थिक मदद देना |बहुत अच्छे विषय पर आपने लिखा बहुत बहुत बधाई आद० तेजवीर सिंह जी
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