आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय भाई साहब, प्रणाम. अब देखिए- कुछ परिमार्जन हुआ है या नहीं.
लघुकथा – परम्परा
''यह असंभव है. हमारे यहां ऐसा नही होता है,'' उस के ताऊजी ने जम कर विरोध किया.
'' तुम्हारी मां और तुम जो चाहे जो करो, हमें कोई ऐतराज नहीं है. मगर, यह नया रिवाज यहाँ नहीं चल सकता है,'' काका ने भी अपना आदेश सुना दिया.
'' क्यों नहीं चला सकता है. जब हमारा समाज में ‘कन्यादान’ हो सकता है तो ‘पुत्रदान’ क्यों नहीं हो सकता हैं ?''
'' यह हमारी परंपरा के खिलाफ है. हम ऐसा नहीं होने देंगे.'' ताऊजी ने काका के सुर में सुर मिलाए ताकि विधवा के मरने के बाद सारी जायदाद उन की हो सके.
'' यह मेरी मां के जीवन सवाल है. हम जैसा चाहे वैसा कर सकती हैं .'' रीना ने प्रतिरोध किया तो ताऊजी दबंगाई से बोले, '' कभी अपनी मां से पूछा है. वह ऐसा करना चाहती है या नहीं ?'' जैसे उन की बात खत्म हुई कि मां आ गर्इ्, '' तुम्हारे ताऊजी ठीक कह रहे हैं. मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगी.''
'' हां मां ! मुझे पता है. आप ऐसा क्यों कह रही हो, क्यों कि आप अपनी होने वाली दुर्दशा नहीं देख सकती है. मगर मैं देख रही हूँ इसलिए आप से कह रही है कि आप यह शादी कर ले.''
फिर माँ को चुपचाप देख कर रीना बोली , '' मां ! आप जवानी में नानाजी के डर से अपने प्रेम का इजहार नहीं कर सकी. मगर, अब जब पापा ही नहीं रहे हैं तब आप अपने प्रेम को इजहार करने से क्यों डर रही है ?''
'' समाज क्या कहेगा ? यह तो सोचो बेटी ?''मां ने बड़ी मुश्किल से इतना ही कहा.
'' मां ! हमें उस की परवाह करना चाहिए जो हमारी परवाह करता है. फिर हमारे नए पापा, खुद शादी कर की इस नई परंपरा ‘पुत्रदान’ को निभा कर हमारे घर आने को तैयार है.''
यह सुन कर मां धम्म से जमीन पर बैठ गर्इ् और धीरे से बोली,'' बेटी ! मुझ में धारा के विपरीत बहने की ताकत न पहले थी और न अब है.''
यह सुन कर रीना ने माँ को हौसला बढ़ाना चाहा , “ माँ ! किसी को तो परम्परा बदलने के लिए हिम्मत व जोश दिखाना ही पड़ेगा ना .” और माँ उन की बात को सुन कर विचारमग्न हो गई कि क्या निर्णय लूं ?
आदरणीय ओमप्रकाश जी, संशोधन के बाद लघुकथा शानदार हो गई. सन्देश तो मुग्ध करता हुआ है ही. इस सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. आपका आयोजन के दौरान लघुकथा का परिमार्जन इस आयोजन के मूल उद्देश्य को पुष्ट करता है. आपने कार्यशाला में अपनी लघुकथा को 'शानदार लघुकथा' में बदल ही दिया. इसके लिए साधुवाद और हार्दिक बधाई. सादर
शानदार सलाह
आदरणीय मोहम्मद आरिफजी, आप को लघुकथा अच्छी लगी. शुक्रिया आप का .
प्रदत्त विषय से न्याय करती सार्थक कथा ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीय ओमप्रकाश जी
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी।आपने अच्छा विषय चुना।प्रयास भी सराहनीय है।संपादन से अच्छी लघुकथा निकल आई।सादर।
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